रात में हर तरफ अंधेरा होता है, पूरा आसमान काला दिखता है. लेकिन जैसे ही सुबह सूरज निकलता है आसमान नीला हो जाता है. हर तरफ रोशनी भर जाती है. लेकिन अंतरिक्ष के साथ ऐसा नहीं होता. वहां सूरज के होने के बाद भी हर तरफ अंधेरा ही रहता है. अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है. जब सूर्य के प्रकाश से पृथ्वी का आकाश नीला दिखाई दे सकता है...तो फिर अंतरिक्ष में मौजूद कई सूर्य उसे रौशनी क्यों नहीं दे पा रहे. चलिए समझने की कोशिश करते हैं इसके पीछे की साइंस क्या है.


अंतरिक्ष काला क्यों दिखाई देता है


दरअसल, इसके पीछे एक सीधा सा सिध्दांत है. आसमान का रंग हमें नीला इसलिए दिखाई देता है, क्योंकि जब सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण और वायुमंडल में मौजूद धूल के कणों के कारण ये रोशनी चारों ओर फैल जाती है और आसमान का रंग नीला दिखाई देने लगता है. वहीं अंतरिक्ष में ना तो वायुमंडल है और न ही प्रकाश का प्रकीर्णन हो पाता है. यही कारण है कि अंतरिक्ष हमेशा काला दिखाई देता है. इससे ये बात स्पष्ट होती है कि अंतरिक्ष में भी पृथ्वी की तरह वायुमंडल होता तो वहां भी प्रकाश का प्रकीर्णन होता और संभवत: वहां भी आसमान का रंग नीला दिख सकता था.


आंखों का भी है रोल


इसे एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं. आप इसे ऐसे समझिए की जब एक अंधेरे कमरे में हम टॉर्च जलाते हैं तो उसकी रोशनी हमारी आंखों में सीधी नहीं पहुंचती, लेकिन इसके बावजूद हमें पता होता है कि कमरे में टॉर्च की रोशनी फैल रही है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब टॉर्च की रोशनी कमरे में मौजूद धूल के कणों से टकराकर प्रतिबिम्ब बनाती है और वह प्रतिबिम्ब हामारी आंखों तक पहुंचती है तभी हमें महसूस होता है या दिखाई देता है कि कमरे में टॉर्च की रोशनी फैल रही है. सेम यही चीज अंतरिक्ष के साथ होती है. अंतरिक्ष में सूर्य की रोशनी जरूर होती है, लेकिन वहां ना तो वायुमंडल है और न ही प्रकाश का प्रकीर्णन हो पाता है...इसलिए हमारे आखों को अंतरिक्ष काला दिखाई देता है.


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