Teachers Day 2025: हमारे देश में हर साल 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जाता है. खासतौर से इसे स्कूलों और कॉलेजों में जमकर सेलिब्रेट किया जाता है. इस दिन स्टूडेंट्स अपने टीचर्स को तोहफे देकर उनका आदर और सम्मान करते हैं. शिक्षक और छात्रों का खास रिश्ता होता है और छात्रों के जीवन में बोर्ड परीक्षा को शिक्षा व्यवस्था का सबसे अहम हिस्सा मानते हैं. 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं छात्रों के भविष्य का आधार मानी जाती हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुगलों के जमाने में भी परीक्षा की एक व्यवस्था थी. उस दौर में भी छात्रों की विद्या, ज्ञान और योग्यता को परखने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते थे, चलिए जानें.
मुगल काल में शिक्षा प्रणाली
मुगलों के समय शिक्षा का केंद्र मदरसे और मकतब हुआ करते थे. यहां मुख्य रूप से कुरान, अरबी, फारसी, गणित, खगोल विज्ञान, तर्कशास्त्र और साहित्य पढ़ाया जाता था. शिक्षा का स्तर ऊंचा करने के लिए बड़े विद्वान और उलेमा नियुक्त किए जाते थे.
क्या था परीक्षा का तरीका?
उस वक्त आज की तरह लिखित बोर्ड परीक्षा नहीं होती थी. मुगल काल में छात्रों का मूल्यांकन मौखिक परीक्षा और शिक्षक के सामने ज्ञान प्रस्तुत करने के आधार पर होता था. छात्र अपना पाठ याद करने के बाद अपने गुरु के सामने बैठकर उसे दोहराते थे.
कभी-कभी किसी विषय में दक्षता साबित करने के लिए सवाल-जवाब की प्रक्रिया होती थी. विद्वानों की सभा में छात्र को बुलाकर उनसे कठिन प्रश्न पूछे जाते थे. इसका उद्देश्य छात्र की स्मरण शक्ति, तर्क क्षमता और ज्ञान की गहराई को परखना होता था.
क्या प्रमाणपत्र और डिग्री भी मिलती थी?
उस जमाने में आज की तरह कोई बोर्ड रिजल्ट या मार्कशीट तो नहीं होती थी, लेकिन शिक्षा पूरी करने के बाद छात्रों को उनके गुरु या संस्था की ओर से इजाजतनामा जिसे प्रमाणपत्र कहा जाता है, वह दिया जाता था. यही डिग्री की तरह काम करता था, जिसे लेकर छात्र नौकरी या विद्वानों की मंडली में स्थान प्राप्त करते थे.
नौकरियों में तब भी होती थी परीक्षा
मुगल काल में प्रशासनिक नौकरियों और दरबार से जुड़ी सेवाओं के लिए भी परीक्षाओं जैसी प्रक्रिया होती थी. कोई शख्स उस नौकरी के लिए कितना योग्य है, इस बात का पता लगाने के लिए उसे साहित्य, खगोल, गणित या सैन्य ज्ञान परखने वाले सवाल पूछे जाते थे. लेकिन कई बार विद्वानों की सिफारिश भी महत्वपूर्ण होती थी.
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