भारतीय राजनीति और कानूनी दुनिया के महारथी स्वराज कौशल का निधन हो गया. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल 73 साल के थे. उन्होंने गुरुवार (4 दिसंबर) को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. स्वराज कौशल सिर्फ सुषमा स्वराज के पति नहीं थे, बल्कि खुद बड़े वकील और राजनेता थे. वह मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके थे, जिसके चलते उन्हें पेंशन समेत अन्य सुविधाएं मिलती थीं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह पेंशन अब किसे मिलेगी? 

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कैसा था स्वराज कौशल की जीवन?

स्वराज कौशल का जन्म 12 जुलाई 1952 को हिमाचल प्रदेश के सोलन में हुआ था. साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले स्वराज को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई का शौक था. उन्होंने चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली. वहां उनकी मुलाकात सुषमा शर्मा से हुई, जो बाद में सुषमा स्वराज बनीं. 13 जुलाई 1975 को दोनों की शादी हुई थी. शादी के बाद स्वराज कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की. वे क्रिमिनल लॉ के बड़े एक्सपर्ट बने. उनकी वकालत इतनी तेज थी कि कोर्ट में जज भी उनकी तारीफ करते थे. महज 34 साल की उम्र में वह देश के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने थे, जो रिकॉर्ड आज भी कायम है.

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ऐसा रहा राजनीतिक सफर

1980 के दशक में स्वराज कौशल हरियाणा से राज्यसभा सांसद बने और छह साल तक संसद में रहे. इसके बाद उन्हें मिजोरम का राज्यपाल बना दिया गया. उस वक्त मिजोरम उग्रवाद की आग में जल रहा था. विद्रोही ग्रुप मिजो नेशनल फ्रंट के नेताओं से बातचीत करके  उन्होंने 1986 का शांति समझौता किया, जिससे मिजोरम में अमन लौटा. 

क्या स्वराज कौशल को मिलती थी पेंशन?

अब सवाल उठता है कि क्या स्वराज कौशल को पूर्व राज्यपाल होने के नाते पेंशन मिलती थी और अब इसका हकदार कौन होगा? स्वराज कौशल राज्यपाल के पद से 1993 में रिटायर हुए थे. उसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट में वकील रहे, लेकिन राज्यपाल का पद मानद होता है. भारतीय संविधान में अनुच्छेद 155-157 राज्यपाल की नियुक्ति और पदावधि बताते हैं कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. यह पांच साल का टर्म होता है, लेकिन उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है. 1982 के गवर्नर्स (एमोल्यूमेंट्स, अलाउंस एंड प्रिविलेज्स) एक्ट के तहत टर्म के दौरान उन्हें सैलरी और सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने राज्यपालों को पेंशन देने का कोई कानून नहीं बनाया है. 

क्या मिलती थीं सुविधाएं?

गौरतलब है कि राज्यपालों को पेंशन दिलाने के लिए 2010 के दौरान संसद में चर्चा हुई थी, लेकिन बिल पास नहीं हुआ. भले ही पूर्व राज्यपाल को पेंशन नहीं मिलती है, लेकिन कुछ सुविधाएं जरूर दी जाती हैं. इनमें फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट शामिल है. 

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