Sunjay Kapur Property Dispute: बॉलीवुड एक्ट्रेस करिश्मा कपूर और उनके पूर्व पति और दिवंगत व्यवसायी संजय कपूर की संपत्ति इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है. उनकी करीब 30,000 करोड़ रुपये की संपत्ति पर अब परिवार में जंग छिड़ गई है. करिश्मा कपूर के बच्चे समायरा और कियान ने दिल्ली हाई कोर्ट में केस दायर किया है. उनका आरोप है कि सौतेली मां प्रिया सचदेव कपूर ने संजय की वसीयत में हेराफेरी की है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि वसीयत कब सही मानी जाती है और क्या इसे रजिस्टर्ड भी कराना होता है? 

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वसीयत क्या है? वसीयत एक ऐसा दस्तावेज है जो परिवार के सदस्यों के बीच प्रॉपर्टी के बंटवारे के प्रोसेस, शर्तों और स्थितियों को सबके सामने रखता है. वसीयत इतनी पावरफुल होती है कि इसमें लिखी जानकारी किसी व्यक्ति के जिंदा न रहने पर सुप्रीम कोर्ट भी मान्य करती है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि वसीयत कैसे लिखी जाती है और वसीयत वैध कब मानी जाती है?

क्या होती है वैध वसीयत?

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भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के मुताबिक, वसीयत को वैध मानने के लिए कुछ बेसिक शर्तें पूरी होनी चाहिए. वसीयत लिखने वाला शख्स कम से कम 18 साल का बालिग हो और दिमागी तौर पर पूरी तरह स्वस्थ हो. मतलब, उसे अपनी संपत्ति, फैसले और परिणामों की पूरी समझ हो. अगर कोई बीमारी या दबाव की वजह से फैसला लिया गया हो, तो वसीयत अमान्य हो सकती है. दूसरा वसीयत में सब कुछ साफ-साफ लिखा होना चाहिए कौन सी संपत्ति किसे मिलेगी, कितना हिस्सा होगा. तीसरा वसीयत पर वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर के अलावा कम से कम दो गवाहों के साइन होने चाहिए. ये गवाह निष्पक्ष हों, यानी वसीयत में उन्हें कोई फायदा न मिल रहा हो. गवाहों को यह कन्फर्म करना होता है कि वसीयतकर्ता ने अपनी पूरी मर्जी से यह लिखा. वसीयत ज्यादातर लिखित रूप में होती है, लेकिन कुछ खास मामलों में मौखिक भी मान्य हो सकती है, हालांकि वसीयत लिखित में होनी चाहिए जिससे इसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके या विवाद के समय कोर्ट में पेश की जा सके.

क्या वसीयत रजिस्टर्ड करना होता है जरूरी? सवाल उठता है कि क्या वसीयत को रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य है? भारतीय कानून के तहत वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है. एक साधारण कागज पर लिखी और हस्ताक्षरित वसीयत भी वैध होती है. हालांकि, रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता को कोर्ट में चुनौती देना मुश्किल होता है. रजिस्ट्रेशन से वसीयत सुरक्षित रहती है. संजय कपूर की प्रॉपर्टी का मामला जटिल हो गया है, क्योंकि वसीयत रजिस्टर्ड नहीं थी, जिसके कारण इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठ रहे हैं. अब कोर्ट में यह साबित करना होगा कि वसीयत में हस्ताक्षर संजय के थे और इसे उनकी स्वतंत्र इच्छा से बनाया गया था.

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