आज के दौर में जिन सनग्लासेस को हम धूप से बचने के लिए लगाते हैं. अगर आपसे कहें कि वे इन सब कामों के लिए कभी बने ही नहीं थे तो आप क्या कहेंगे. दरअसल, सनग्लासेस आज फैशन का दूसरा नाम बन गए हैं. लेकिन आज हम आपको इन सनग्लासेज के अस्तित्व में आने के पीछे का इतिहास बताएंगे. तो आइए जानते हैं ये सनग्लासेस क्यों और किस काम के लिए बनाए गए थे.
पहली बार यहां बने थे सनग्लासेससनग्लासेस के अविष्कार को लेकर काफी ज्यादा असमंजस है. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि इसका अविष्कार 13वीं सदी के आसपास हुआ तो कुछ इतिहासकारों और इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार इसका अविष्कार 1282 से 1286 के बीच इटली में हुआ था.हालांकि, जिस मत को ज्यादातर लोग मानते हैं और उसके ठोस आधार भी हैं. वह यह है कि सनग्लासेस का आविष्कार या धूप के चश्मे का आविष्कार, जिन्हें आप रंगीन चश्मे भी कह सकते हैं, 12 वीं सदी में चीन में हुआ. और फिर यहीं से 1430 के आसपास यह चश्मे इटली भेजे गए और उसके बाद यहां से पूरी दुनिया में फैले.
इसलिए बने थे सनग्लासेसआज के दौर में जो सनग्लासेस फैशन के लिए एक ट्रेंड बन गए हैं जिन्हें फिल्मों में हीरो हिरोइन पहन कर स्टाईल मारते दिखते हैं दरअसल, ये कभी इल चीज के लिए बने ही नहीं थे. इनके अविष्कार का मकसद सिर्फ न्याय से जुड़ा था.कहा जाता है कि 12वीं शताब्दी में इन चश्मों को चीन में जजों के लिए बनाया गया था, ताकि वह जब कोर्ट में गवाहों से पूछताछ करें तो उनके आंखों और चेहरे के हाव-भाव और उनकी भावनाएं गवाहों के सामने जाहिर ना हों.
इसलिए कहलाने लगे धूप के चश्मेंबड़ा सवाल उठता है कि जब यह चश्मे जजों के लिए बनाए गए थे तो आखिरकार इन्हें धूप के चश्मे क्यों कहा जाने लगा और इनका सफर यहां तक पहुंचा कैसे. दरअसल, 18 वीं सदी के आसपास नजर के चश्मे बनाए जाने लगे थे और इन्हें थोड़ा बेहतर बनाने के लिए इनके लेंस में रंगों का इस्तेमाल किया जाने लगा था. चश्मा बनाने वाले लोगों का तर्क रहता था कि इससे आंखों की रोशनी ठीक हो सकती है. हालांकि, जब यह चश्मे पहन कर लोग धूप में निकलते तो उन्हें क्लियर यानि ठीक से दिखाई देता और उसके बाद से ही यह चश्मे धीरे-धीरे धूप के चश्मे कहलाने लगे.
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