हर प्राणी को अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए रिप्रोड्यूज करना जरूरी होता है. ऐसे में सभी प्राणियों की रिप्रोडक्शन प्रोसेस और कैपेबिलिटी एक-दूसरे से काफी अलग होती है. कोई एक बार में एक बच्चे को जन्म देता है तो कोई एक बार में हजारों की संख्या में अंडे देता है. 

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लेकिन हालही में एक स्टडी में ये सामने आया है कि हिमालयों में पाए जाने वाली एक मछली की एक ऐसी स्पीशीज है जो पूरा साल अंडे देने लगी है और उनकी रिप्रोडक्शन कैपेबिलिटी  काफी ज्यादा हो गई है. इन सबका कारण कहीं न कहीं मौसम में होने वाले बदलाव हैं. ऐसे में आइए आज हम आपको बताते हैं कि इंसानों की किस गलती के कारण मछलियां साल भर अंडे देने लगी हैं. आइए जानते हैं इस बारे में.

स्टडी में क्या आया सामने?

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हालही में देहरादून के वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया हैं कि मछलियों में रिप्रोडक्शन कैपेबिलिटी उनकी उम्र पर नहीं बल्कि उनकी लेंथ पर डिपेंड करती है. हिमालयों में पाई जाने वाली स्नो ट्रॉउट मछली पर की गई एक स्टडी में ये फैक्ट सामने आया है. दरअसल, इस स्टडी के रिजल्ट में ये पता चला है कि इंसानों की हरकतों और नेचर में की गई दखलअंदाजी के चलते मछलियों की रिप्रोडक्शन प्रोसेस में काफी बदलाव देखने को मिलें हैं. स्नो ट्रॉट मछलियां जो पहाड़ों में पाई जाती हैं, वह साल भर अंडे देने लगी हैं. यह गौर करने की बात है कि ये मछलियां नेचुरल वे में केवल दिसंबर से मार्च तक ही अंडे देती थी. 

कब अंडे देना शुरू करती है स्नो ट्राउट?

रिसर्च के अनुसार, मादा 23.6 सेंटीमीटर की लंबाई होने पर पहली बार अंडे देना शुरू करती है. ये हिमालयन रीजन में पाए जाने वाली प्रजातियों को समझने के लिए एहम खोज है. स्नो ट्राउट मछली अपने नेचुरल टाइम पीरियड में तब अंडे देती है, जब तापमान और रिवर फ्लो स्टेबल रहता है. लेकिन अब मानव के दखलअंदाजी के चलते इनकी रिप्रोडक्शन साइकिल इर्रेगुलर हो गई है और ये साल भर अंडे देने लगी हैं.

इसी कारण से कई और प्राणी जैसे- झींगा, कीट और बाकी छोटी प्रजातियों का संतुलन भी गड़बड़ा गया है. इतना ही नहीं इसका असर इंसानों पर भी पड़ सकता है क्योंकि हजारों पहाड़ी लोग ट्राउट को पालते हैं. ऐसे में अगर ट्राउट की रिप्रोडक्शन में कोई दिक्कत आती है तो उनकी उम्र और संख्या पर भी असर पड़ेगा और इससे रोजगार को भी नुकसान हो सकता है.

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