स्लीपर सेल यह शब्द आपने भी फिल्मों या सीरीज में खूब सुना होगा. मूवीज में दिखाया जाता है कि कैसे आतंकी संस्थाएं अपने स्लीपर सेल्स को दूसरे देशों में भेजती हैं और जरूरत पड़ने पर उनसे बड़े-बड़े ब्लास्ट और अटैक करवाए जाते हैं. न जानें ऐसी कितनी आतंकी घटनाएं होती हैं जो कि आतंकी स्लीपर सेल्स के जरिए अंजाम देने की कोशिश करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के लिए इनको पड़ना बड़ा कठिन काम होता है. लेकिन फिर भी कड़ी मेहनत के बाद एजेंसियां इनको धर दबोचती हैं और कार्रवाई करती हैं. चलिए जानें कि पाकिस्तान अपने स्लीपर सेल्स को कैसे एक्टिव करता है.
जंग जैसी परिस्थितियों का फायदा उठाते हैं स्लीपर सेल
पाकिस्तान हमेशा से आतंकियों का पनाहगाह रहा है. वहां आतंकी खूब फलते-फूलते हैं. हाल ही में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव देखने को मिला था, उस वक्त भी ऐसी खबरें आई थीं कि पाकिस्तानियों ने अपने आतंकियों को भारत में भेजा था. इसके अलावा जंग जैसी परिस्थितियों में भी पाकिस्तानी तनाव का फायदा उठाकर देश में कुछ न कुछ नापाक हरकत करने के बारे में सोचते रहते हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां ऐसे स्लीपर सेल्स को खोजने के लिए पूरी तरह से सक्रिय मोड में हैं.
कैसे एक्टिव किए जाते हैं स्लीपर सेल
स्लीपर सेल आतंकियों का एक गुप्त दस्ता होता है जो कि तब तक एक्टिवेट नहीं होता है, जब तक उनके आका की तरफ से उनको कोई मैसेज या जानकारी नहीं मिलती है. तब तक उनको कोई भी हरकत करने की मनाही होती है और ये आम आदमी के बीच में ही आम तरीके से भेष बदलकर रहते हैं, जिससे उनको पकड़ना मुश्किल होता है. ये सभी कई बार तो काफी लंबे समय तक भी डिएक्टिव मोड में रहते हैं. आज के समय में बढ़ती हुई टेक्नोलॉजी ने इनका काम भी आसान कर दिया है. ऐसे में जब आतंकी संगठनों या फिर पाकिस्तान को इन्हें एक्टिव करना होता है तो कोई मैसेज, फोन कॉल या फिर कोई और सीक्रेट कोड के जरिए इन्हें एक्टिव किया जाता है. कई ऐप्लीकेशन और गेम्स का इस्तेमाल इसके लिए किया जाता है.
कई बार तो खुद नहीं जानते कि किसके लिए काम कर रहे
स्लीपर सेल में भर्ती हुए आतंकियों को कई बार तो यह खुद पता नहीं होता है कि वे किसके लिए काम कर रहे हैं. महीनों तक वे जासूस बनकर दुश्मन देश में रहते हैं और वहां की जरूरी जानकारी इकट्ठा करते रहते हैं. इनको डीप कवर एजेंट भी कहा जाता है. आतंकी संगठन इसके लिए टेक्निकल रूप से सक्षम लोगों की तलाश करते हैं, जिनपर कोई क्राइम रिकॉर्ड न हो. इसकी वजह है कि पुलिस को इन पर जल्दी कोई संदेह न हो और वे पकड़े जाने पर भी बच निकलें.
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