साल के अक्टूबर और नवंबर के महीने में जब तापमान गिरने लगता है और पेड़ों की पत्तियां हरे से सुनहरी, लाल और नारंगी रंग में बदलने लगती है. इस समय यह नजारा किसी जादू से कम नहीं लगता है. न्यूयॉर्क, जापान और ब्रिटेन हर जगह पतझड़ का यह मौसम लोगों को अपनी और खींचता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर पेड़ों की पत्तियां रंग क्यों बदलती है. दरअसल वैज्ञानिकों ने इसके पीछे का रासायनिक कारण तो समझ लिया है. लेकिन अब भी इस बात पर बहस जारी है कि पेड़ों ने इतने चमकीले रंग क्यों विकसित किए हैं. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि पतझड़ के मौसम में पत्तियों का रंग क्यों बदल जाता है और इसमें कौन सा विज्ञान काम करता है.
रंग बदलने की वैज्ञानिक प्रक्रिया
वैज्ञानिकों के अनुसार पतझड़ में पत्तों का हरा रंग यानी क्लोरोफिल धीरे-धीरे खत्म होने लगता है. जैसे ही यह रंग खत्म होता है, पत्तों के असली रंग सामने आने लगते हैं जो पीले, लाल या नारंगी रंग होते हैं. इनमें पीला रंग कैरोटिनॉइड नाम के पिगमेंट से बनता है, जबकि लाल या बैंगनी रंग पत्तों में एक अलग प्रक्रिया होती है. उनका रंग क्लोरोफिल के नुकसान और एंथोसाइनिन नामक कंपाउंड बनने से आता है. यह पदार्थ कई फलों और सब्जियों में भी पाया जाता है. दरअसल जब पेड़ सर्दियों की तैयारी करते हैं तो पत्तों के पोषक तत्व वापस पेड़ में चले जाते हैं और पत्ते अपने असली रंग दिखाने लगते हैं. यही वजह है कि पतझड़ आते ही पत्तों का रंग बदल जाता है.
पत्तों का रंग बदलना फोटो प्रोटेक्शन थ्योरी
वहीं एक थ्योरी के अनुसार पतझड़ में पत्तों का रंग बदलना फोटो प्रोटेक्शन थ्योरी यानी सूरज की रोशनी से सुरक्षा की प्रक्रिया का हिस्सा है. एंथोसायनिन पिगमेंट पत्तों के लिए एक तरह का नेचुरल सनस्क्रीन बनाते हैं जो ज्यादा धूप में ऑक्सीडेशन और सेल डैमेज से उनकी रक्षा करते हैं. माना जाता है कि इससे पेड़ों को अपने पत्तों से पोषक तत्व दोबारा अवशोषित करने का ज्यादा समय मिलता है. वहीं रिसर्च बताती है कि उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के पेड़ों में लाल रंग ज्यादा दिखाई देता है, क्योंकि वहां पतझड़ में सूरज की रोशनी और तापमान दोनों में अचानक बदलाव होता है. जबकि यूरोप के पेड़ों में पीले रंग का प्रभाव ज्यादा दिखाई देता है.
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कीटों से बचाव का संकेत
एक दूसरी थ्योरी के अनुसार लाल पत्तों का रंग असल में कीटों से बचाव का संकेत होता है यानी पेड़ों ने यह रंग इसीलिए विकसित किया है कि कीड़े-मकोड़े उनसे दूर रहे. हालांकि हाल ही में हुई एक रिसर्च बताती है कि कीड़े जैसे एफिड्स लाल रंग को वैसे नहीं देख पाते जैसे इंसान देखते हैं. इसलिए यह थोड़ी अब भी पूरी तरह साबित नहीं हुई है. वहीं कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि लाल रंग एफिड्स को पेड़ों से दूर रखता है क्योंकि ये पत्तियां उन्हें मरी हुई या कमजोर दिखती है.
इंसान और मौसम का भी असर
पेड़ों के रंग बदलने पर इंसान और मौसम परिवर्तन का भी असर देखा जा रहा है. कई वैज्ञानिक मानते हैं कि इंसानों ने अनजाने में अपने आसपास उन्ही पेड़ों की प्रजातियों को बढ़ाया है, जिनके रंग आकर्षक थे. वहीं बदलते मौसम और सूखे की कंडीशन ने पत्तियों के रंग पर भी असर डाला है. कुछ जगह पर सुखे और गर्म पतझड़ की वजह से पत्तियों का रंग फीका और असमान दिखा है. वहीं जिन पेड़ों पौधों की जड़े जमीन में कम गहराई तक जाती है वह सुखे से ज्यादा प्रभावित होते हैं. यह भी बताया जाता है कि इसी प्रकार के पौधे पतझड़ में सबसे सुंदर रंग दिखते हैं. वैज्ञानिकों ने पत्तियों के रंग बदलने की रासायनिक प्रक्रिया को तो समझ लिया है लेकिन यह रहस्य अभी भी बरकरार है कि आखिर पेड़ों ने यह चमकीले रंग क्यों विकसित किए हैं. इसे लेकर कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोशनी से बचाव का तरीका है जबकि कुछ इसे कीटों से सुरक्षा का संकेत मानते हैं.
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