Sanchar Saathi App: देश में एक नया डिजिटल बवंडर उठ चुका है- एक ऐसा ऐप, जो आपके फोन में बिना पूछे आकर बैठ जाएगा और हटाए भी नहीं हटेगा. सरकार कहती है, यह आपकी सुरक्षा की ढाल है और विपक्ष दावा करता है कि यह आपकी जेब में जबरन घुसा निगरानी कैमरा है. आखिर सच क्या है? संचार साथी नाम की यह तकनीकी पहेली अब सियासी तूफान का केंद्र बन चुकी है. आखिर इसमें ऐसा क्या है जिसने संसद से सोशल मीडिया तक इसे बहस का हिस्सा बना दिया है? आइए जानें कि इसे बनाया किसने है और क्या है डेटा भी एक्सेस करेगा.

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फोन में पहले से इंस्टॉल होगा यह एप

बीते हफ्ते दूरसंचार मंत्रालय का एक दस्तावेज जैसे ही सार्वजनिक हुआ, टेक इंडस्ट्री से लेकर संसद तक हलचल मच गई. आदेश इतना साफ था कि कोई भ्रम की गुंजाइश ही नहीं बची. आने वाले महीनों में हर नए स्मार्टफोन में ‘संचार साथी’ पहले से इंस्टॉल होकर आएगा और यूजर उसे हटाने का विकल्प भी नहीं पाएंगे. अब यहीं से असली कहानी शुरू होती है और विवाद भी. 

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किसने बनाया संचार साथी एप

संचार साथी कोई अचानक उतरा हुआ ऐप नहीं है. यह DOT के CEIR और TAFCOP जैसे दो अलग-अलग सिस्टम का संयुक्त रूप है. एक वो सिस्टम जो चोरी हुए मोबाइल को रोकता है, और दूसरा वो प्लेटफॉर्म जो आपके नाम पर कितने नंबर चल रहे हैं, यह बताता है. सरकार ने 2023 में इन दोनों को मिलाकर एक डिजिटल छतरी बनाई, और इसी से निकला ‘संचार साथी’. अब 2025 में यह छतरी आपके फोन के ऊपर हमेशा के लिए लगाने की तैयारी चल रही है. 

क्या फायदा होगा इस एप का?

सरकार कहती है कि इससे साइबर अपराधों पर बड़ा अंकुश लगेगा, जैसे- नकली IMEI, फर्जी सिम, जाली मोबाइल, चोरी हुए फोन की ट्रैकिंग सब कुछ मिनटों में हो सकेगा. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह ‘सिक्योरिटी’ के नाम पर सोशल मॉनिटरिंग का नया हथियार है. 

क्या इससे खतरे में है डेटा

यही वह सवाल है जिसने लाखों मोबाइल उपयोगकर्ताओं की नींद उड़ा दी है. एंड्रॉयड में ऐप को कई संवेदनशील एक्सेस मिल सकते हैं जैसे- कॉन्टेक्ट, कॉल लॉग, एसएमएस, लोकेशन, कैमरा, फोटो और फोन की फाइलें. iPhone में ये एक्सेस सीमित हैं, पर फोटो-कैमरा-फाइल तक पहुंच फिर भी रहती है. हालांकि ऐप की परमिशन ऑन-ऑफ करने का अधिकार आपके हाथ में रहता है, लेकिन सवाल यह है कि जब ऐप डिलीट ही नहीं होगा, तो क्या यूजर वाकई कंट्रोल में रहेगा?

व्हाट्सएप, गूगल प्ले और बाकी ऐप भी डेटा लेते हैं, फिर बहस क्यों?

सरकार समर्थकों का तर्क है कि कई निजी ऐप पहले ही लोकेशन, कॉन्टैक्ट और व्यवहारिक डेटा का उपयोग करते हैं. पेमेंट ऐप तो बिना लोकेशन के भुगतान भी नहीं होने देते हैं. मगर संचार साथी की बहस इसलिए बड़ी है क्योंकि, पहली बार ऐसा ऐप सीधे सरकार की निगरानी में होगा और उससे बचने का विकल्प नहीं मिलेगा. विपक्ष इसी प्वाइंट पर आग उगल रहा है कि डेटा भी आपका, मोबाइल भी आपका, लेकिन नियंत्रण किसी और का क्यों.

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