हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान- भारत और हिंदू एक ही हैं… इसे हिंदू राष्ट्र घोषित करने की जरूरत नहीं, ने राजनीतिक और संवैधानिक बहस को एक बार फिर गर्म कर दिया है. हालांकि उन्होंने किसी बदलाव की जरूरत नहीं बताई, लेकिन सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि अगर भविष्य में किसी वजह से भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का प्रस्ताव आता है, तो संविधान में किस प्रकार के बदलाव अनिवार्य होंगे और उनका विधायी रास्ता कैसा होगा. आइए समझ लेते हैं.

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प्रस्तावना में बदलाव सबसे कठिन रास्ता 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हमारी पहचान की नींव है. हिंदू राष्ट्र घोषित करने की दिशा में सबसे पहला और सबसे भारी कदम यही होगा कि प्रस्तावना को संशोधित कर इस शब्द को हटाया जाए. संविधान विशेषज्ञों के अनुसार प्रस्तावना सिर्फ एक औपचारिक पंक्ति नहीं है, बल्कि पूरे संविधान की आत्मा है. इसे बदलने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत और राज्यों के आधे से अधिक विधानमंडलों की मंजूरी अनिवार्य होगी. यानी संख्या के लिहाज से यह बेहद चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है.

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मौलिक अधिकारों में बड़े बदलाव

अनुच्छेद 14 और 15 भारत में समानता और गैर-भेदभाव की गारंटी देते हैं. यदि भारत को किसी धार्मिक पहचान से जोड़ना है, तो इन अनुच्छेदों में संशोधन करना पड़ेगा. अनुच्छेद 14 को इस प्रकार बदला जाएगा कि राज्य धार्मिक आधार पर अलग नीति बना सके. अनुच्छेद 15 में भी संशोधन करके धर्म के आधार पर भेदभाव की अनुमति देनी होगी, जो वर्तमान व्यवस्था में पूरी तरह वर्जित है.

नागरिकता कानूनों में परिवर्तन

हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को संवैधानिक रूप देने के लिए नागरिकता कानूनों में व्यापक संशोधन की जरूरत पड़ेगी. नागरिकता अधिनियम 2019 ने इस दिशा में धर्म आधारित प्रावधान की झलक दी थी. परंतु हिंदू राष्ट्र लागू करने के लिए नागरिकता को धर्म से सीधे जोड़ने वाले प्रावधानों की पूरी तरह पुनर्रचना करनी होगी. इससे भारत की मौजूदा नागरिकता नीति पूरी तरह बदल जाएगी. 

राज्य की शक्तियों में बदलाव

भारत का संविधान राज्य को धर्म से दूरी बनाए रखने के लिए बाध्य करता है. अगर भारत खुद को हिंदू राष्ट्र घोषित करता है, तो राज्य को धार्मिक मामलों में अधिक शक्तिशाली हस्तक्षेप की अनुमति देनी होगी. इसमें व्यवस्थाएं ऐसी होंगी जहां सरकार धार्मिक आधार पर संस्थागत फैसले लेने में सक्षम हो. 

प्रक्रिया कितनी कठिन

भारतीय संविधान दुनिया के सबसे कठोर संवैधानिक ढांचों में माना जाता है. हिंदू राष्ट्र जैसे बड़े बदलाव के लिए न केवल संसद में भारी बहुमत, बल्कि कई राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी.  व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो यह संभव है, लेकिन बेहद कठिन है.

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