भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि पर देश के तमाम लोग उन्हें याद कर रहे हैं. 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. राजीव गांधी की मृत्यु तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी. ऐसे में भारत में हर साल 21 मई को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि मनाई जाती है.
राजीव गांधी की हत्या भारत के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे. इसी कार्यकाल के बीच राजीव गांधी ने दल बदलू नेताओं पर लगाम लगाई थी और एक कानून लागू किया था. चलिए जानते हैं कि राजीव गांधी ने कैसे इस पर लगाम लगाई और कौन सा कानून लागू किया था
भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे. उस समय उनकी उम्र 40 साल थी और वे भारत के अब तक के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री हैं. राजीव गांधी 1984 से 1989 तक अपनी पार्टी की बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व करने वाले आखिरी कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे. लेकिन साल 1991 में आज ही के दिन तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार के दौरान श्रीलंका के आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ने उनकी हत्या कर दी थी.
राजीव गांधी एक प्रोफेशनल पायलट थे, लेकिन देश सेवा के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा. इसके साथ ही राजीव गांधी को भारत में कंप्यूटर और सूचना तकनीक की क्रांति का जनक माना जाता है. उन्होंने राज व्यवस्था को मजबूती देने और युवाओं को मतदान का अधिकार दिलाने जैसे कई ऐतिहासिक फैसले लिए. राजीव गांधी की सरकार ने 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE) की घोषणा की थी.
प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, राजीव गांधी ने दल बदलू नेताओं पर लगाम लगाई और राजीव गांधी सरकार ने 1985 में दल-बदल विरोधी कानून बनाया. यह कानून भारतीय संविधान के 52वें संशोधन के रूप में जोड़ा गया. इसका मकसद था कि चुने गए सांसद या विधायक बार-बार पार्टी न बदल सकें, जिससे सरकार अस्थिर न हों, इसके तहत निर्वाचित सांसदों को अगले चुनाव तक विपक्षी पार्टी में शामिल होने से रोक दिया गया था.
क्या है दल बदल विरोधी कानून
1967 से 1983 के बीच भारत की राजनीति में दल-बदल आम हो गया था. कई नेता अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चले जाते थे. कभी सत्ता पाने के लिए, कभी मंत्री बनने के लिए. 1980 तक आते-आते दल-बदल इतना बढ़ गया कि संसद को 52वां संविधान संशोधन एक्ट' (1985)पास करना पड़ा. इससे संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई. जिसमें दल-बदल पर रोक लगाई गई.
राजीव गांधी ने 1984 के चुनाव में वादा किया था कि वे दल-बदल पर रोक लगाने वाला कानून बनाएंगे और उन्होंने सत्ता में आते ही 8 हफ्तों के अंदर संसद में दल बदल विरोधी कानून भी पास कराया हालांकि पहले, उनकी मां इंदिरा गांधी ने भी 1973 में ऐसा एक विधेयक पेश किया था, लेकिन आपातकाल और राजनीतिक अस्थिरता के कारण वह पास नहीं हो पाया था. इस कानून के तहत कोई भी विधायक या सांसद अगर अपनी पार्टी छोड़ता है, तो विधायक की सदस्यता रद्द की जा सकती है. लेकिन अगर बड़ी संख्या में दल-बदल हो तो उसे वैध माना गया था. राजीव गांधी की मृत्यु के बाद 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस कानून को और मजबूत किया और इसके लिए 91वां संविधान संशोधन किया गया.
ये भी पढ़ें - CJI गवई को महाराष्ट्र में मिला परमानेंट स्टेट गेस्ट का दर्जा, जानें इसमें क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं