Vande Mataram Debate: लोकसभा में वंदे मातरम को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा कि 'हमारे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम का नारा लगाते हुए फांसी को गले लगाया.' उन्होंने आगे कहा कि 'यह अलग-अलग जेलों में हुआ लेकिन सबका मंत्र एक ही था वंदे मातरम.' इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने उन अखबारों का भी जिक्र किया जो स्वतंत्रता की लड़ाई में शुरू किए गए थे और उनका नाम वंदे मातरम था. आइए जानते हैं कि आजादी की लड़ाई के दौरान किसने इन अखबारों को शुरू किया था जिसके बारे में पीएम मोदी ने संसद में बात की.

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स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम अखबार की शुरुआत 

वंदे मातरम नाम इतना शक्तिशाली और प्रेरणादायक था कि यह नारों के साथ-साथ प्रेस में भी दिखाई दिया. प्रेस उस वक्त ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे मजबूत हथियारों में से एक थी. कई राष्ट्रवादी नेताओं ने जनता में जागरूकता को जगाने और औपनिवेशिक नीतियों को चुनौती देने के लिए इसी नाम से अखबार शुरू किए. 

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बिपिन चंद्र पाल ने शुरू किया पहला बंदे मातरम अखबार 

अगस्त 1906 में राष्ट्रवादी नेता बिपिन चंद्रपाल ने कोलकाता से 'बंदे मातरम' नाम का एक अंग्रेजी साप्ताहिक अखबार शुरू किया. उनका सीधा सा मकसद था राष्ट्रीय गौरव जगाना, स्वदेशी को बढ़ावा देना और साथ ही भारतीयों की राजनीतिक आकांक्षाओं को समाज के अंग्रेजी बोलने वाले वर्ग तक पहुंचाना. बिपिन चंद्र पाल का प्रकाशन जल्द ही एक बौद्धिक हथियार बन गया. 

महर्षि अरबिंदो घोष ने संभाला संपादक का पद 

अखबार के लांच होने के तुरंत बाद श्री अरबिंदो घोष ने बंदे मातरम के संपादक का पद संभाल लिया. उन्होंने इस अखबार को साप्ताहिक से दैनिक बनाया और इस अखबार को कांग्रेस के अंदर चरमपंथी गुट की सबसे प्रभावशाली आवाज बना दिया. अरबिंदो के संपादकीय जोशीले और बिना किसी माफी के राष्ट्रवादी थे. ब्रिटिश सरकार ने अकबर को इतना खतरनाक माना कि इसे सीधे तौर पर 1910 के प्रेस अधिनियम जैसे कड़े कानून के पीछे एक वजह बताया गया. इस अधिनियम को क्रांतिकारी विचारों को दबाने के लिए बनाया गया था. 

भीकाजी कामा ने पेरिस से शुरू किया वंदे मातरम अखबार 

मैडम भीकाजी कामा ने 1909 में पेरिस से वंदे मातरम नाम का एक राष्ट्रवादी अखबार का प्रकाशन शुरू किया था. इस अखबार का उद्देश्य भारत में राष्ट्रवाद और ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देना था. इसके लिए मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में पेरिस इंडियन सोसाइटी की स्थापना की और उसी के जरिए इस अखबार का प्रकाशन शुरू किया. इस अखबार को ब्रिटिश प्रतिबंध के जवाब में शुरू किया गया था.

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