देश में जब पैसे की बात होती है, तो सबसे पहले हर कोई भारतीय रिजर्व बैंक का नाम लेता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक बार ऐसा भी हुआ था कि भारतीय छापाखानों के अलावा विदेश से भारतीय करेंसी को छपवाया गया था. आज हम आपको पीएम देवेगौडा के उस किस्से के बारे में बताने वाले हैं, जब उन्होंने विदेश से करेंसी छपवाने का फैसला लिया था. 


विदेश में  छपी भारतीय करेंसी ?


 बता दें कि 08 मई 1997 के दिन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने एक बड़ा फैसला लिया था. दरअसल पहली बार सरकार ने भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाने का फैसला किया था. उसके बाद सालों तक भारतीय करेंसी बाहर से छपकर आती रही थी. दरअसल 1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया था कि देश की आबादी बढ़ रही है. इसके साथ आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ रही है. इससे निपटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत थी. वहीं भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर पा रहे थे.


केंद्र सरकार


1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी. जिसके बाद एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने थे. देवेगौडा ने इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला किया था. आजादी के बाद ये पहला और आखिरी मौका था जब भारतीय करेंसी विदेश में छपने की नौबत आई थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया था. इसके बाद कई साल तक भारतीय नोटों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से छपकर आता था. हालांकि ये बहुत मंहगा सौदा था. वहीं भारत सरकार को इसके लिए कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते थे.


सरकार की आलोचना हुई


कहा जाता है कि सरकार तब 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था. इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था. सरकार के इस फैसले की बहुत आलोचना हुई थी. इसके बाद बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही बंद कर दिया गया था. भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया था. 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला था. वहीं वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में खोला गया था. इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ गई थी.


कहां से आता है करेंसी का कागज


जानकारी के मुताबिक करेंसी के कागजों के लिए देश में ही 1968 के दिन होशंगाबाद में पेपर सिक्योरिटी मिल खोला गया था. इसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं करता है. इसलिए हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था.


अब सब कुछ स्वदेशी


जानकारी के मुताबिक पेपर, स्याही सब कुछ अब देश में बनता है. हालांकि कुछ समय पहले तक भारतीय नोटों में इस्तेमाल होने वाला कागज का बड़ा हिस्सा जर्मनी और ब्रिटेन से आता था. वहीं नोट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला खास वाटरमार्क्ड पेपर जर्मनी की ग्रिसेफ डेवरिएंट और ब्रिटेन की डेला रूई कंपनी से आता था, जो अब भारत में ही तैयार हो रहा है.


पहला प्रिटिंग प्रेस


जीके का एक सवाल होता है कि देश का सबसे पहला प्रिटिंग प्रेस कहां खुला था. इसका जवाब है 1924 में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी. इसके बाद 1928 में पहली बार भारत में पांच रुपए के करेंसी नोट की प्रिंटिंग की गई थी. आजादी के बाद यहीं से भारत के सभी नोटों का मुद्रण होता था. 


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