आज की दुनिया में इंटरनेट सबसे जरूरी संसाधनों में एक है. इंटरनेट की स्पीड स्लो होने या इंटरनेट के बंद होने पर आधे से ज्यादा काम रुक जाते हैं. इंटरनेट से अच्छी स्पीड मिले इसके लिए अक्सर लोग महंगे प्लान लेते हैं. लेकिन, आज हम आपको एक ऐसा किस्सा सुनाने वाले हैं, जिसको सुनकर आप कहेंगे क्या इंसान है.


दरअसल, अमेरिका का एक शख्स महंगे इंटरनेट बिल से परेशान था, उसके बावजूद उसे इंटरनेट की स्पीड स्लो मिलती थी. इसके बाद उसने अपना ही ब्रॉडबैंड बनाने का फैसला किया. जानिए कैसे हुआ ये संभव...


 स्लो इंटरनेट से परेशान


डेली स्टार न्यूज वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, जेयर्ड मॉच अमेरिका के मिशिगन में रहते हैं. वो जिस इलाके में रहते हैं, वो एक ग्रामीण क्षेत्र है. उन्हें उनके घर तक अच्छी इंटरनेट स्पीड नहीं मिलती थी. इससे परेशान होकर उन्होंने हाई स्पीड इंटरनेट लगवाने का सोचा. लेकिन घर तक हाई स्पीड इंटरनेट लाने का खर्च उन्हें 41 लाख रुपये से ज्यादा बताया गया था. जेयर्ड इतनी फीस नहीं देना चाहते थे, इस वजह से उन्होंने तय किया कि वो खुद से इसका कोई ऑप्शन खोजेंगे.


कैसे बनाया इंटरनेट


जानकारी के मुताबिक, 6 साल पहले जेयर्ड ने अपने बगीचे में खुद का फाइबर ब्रॉडबैंड (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर) इंस्टॉल किया था. उनकी इस ब्रॉडबैंड कंपनी का नाम वॉशटेनॉ फाइबर प्रॉपर्टी था. उस वक्त वो अकेले अपनी इस कंपनी के ग्राहक हुआ करते थे. लेकिन, धीरे-धीरे वॉशटेनॉ काउंटी में उन्होंने अपने पड़ोसियों को भी कस्टमर बनाना शुरू कर दिया था. बता दें कि जनवरी 2021 तक ये नेटवर्क 30 प्रॉपर्टीज तक फैल चुका था. लेकिन, 2022 में उनकी मेहनत रंग लाई. दरअसल, उन्हें सरकार की ओर से 21 करोड़ रुपये मिले थे, जिससे वो अपनी ब्रॉडबैंड सर्विस को ज्यादा फैला सकें.


बेहद कम दाम 


जेयर्ड ने अब तक अपनी इंटरनेट सेवाओं से 400 से ज्यादा घरों को जोड़ लिया है. उन्होंने कहा कि ये इंटरनेट बहुत कारगर है, क्योंकि इसके जरिए छोटी जगहों के लोगों के पास भी बड़े शहरों के लोगों की तरह इंटरनेट का एक्सेस और स्पीड मिल रहा है. जब जेयर्ड इंटरनेट लगवाना चाहते थे, उस वक्त अमेरिका की सबसे बड़ी टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी कॉमकास्ट ने उन्हें 41 लाख रुपये कोट किए थे. लेकिन आज जेयर्ड के ग्राहकों को सिर्फ 16 हजार रुपये ही चुकाने पड़ते हैं, जिससे वो अपने घर तक फाइबर केबल लेकर आएं. वहीं इंटरनेट फीस के लिए 6 हजार रुपये प्रति माह देने पड़ते हैं. 


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