भारत की न्याय व्यवस्था में पेंडिंग मामलों की संख्या नई नहीं है, लेकिन ताजा आंकड़े स्थिति की गंभीरता को और उजागर करते हैं. देशभर के हाईकोर्ट में ऐसे 2329 मामले पेंडिंग है जिन्हें दाखिल हुए 50 साल से ज्यादा हो चुके हैं. इनमें से सबसे बड़ी हिस्सेदारी अकेले कोलकाता हाई कोर्ट की है जहां देश के 50 साल पुराने सबसे ज्यादा पेंडिग पड़े है. 

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कोलकाता हाई कोर्ट में सबसे ज्यादा पेंडिंग केस 


कोलकाता हाई कोर्ट जो ब्रिटिश शासन के समय स्थापित तीन पहले हाईकोर्ट्स में से एक है. इस लिस्ट में सबसे ऊपर है, जहां 2185 केस अब भी पेंडिंग हैं. यह आंकड़ा देश भर में 50 साल से ज्यादा समय से पेंडिंग मामलों का 94 प्रतिशत है. पिछले साल तक यह संख्या 2085 थी यानी सिर्फ एक साल में इस लिस्ट लगभग 100 केस और जुड़ गए हैं. 


दूसरे नंबर पर मद्रास तो तीसरे नंबर पर पटना हाई कोर्ट


 कोलकाता के बाद मद्रास हाई कोर्ट में 56 और पटना हाई कोर्ट में 46 मामले अभी निपटारे का इंतजार कर रहे हैं. देश के अन्य हाई कोर्ट की स्थिति भी बेहतर नहीं है. अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट की बात की जाए तो वहां 17 केस अभी भी पेंडिंग है, वहीं तेलंगाना हाई कोर्ट में 9 केस तो ओड़िशा हाई कोर्ट में 8 केस, इसके अलावा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चार, मुंबई हाई कोर्ट में दो और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में भी दो केस पेंडिंग है. कुल मिलाकर देश के 25 हाई कोर्ट में 50 साल से ज्यादा पुराने 2329 मामले पेंडिंग है. 


40 से 50 साल पुराने केस भी लाखों की संख्या में 


केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, पेंडिंग मामलों की संख्या केवल 50 साल पुराने केस तक सीमित नहीं है. आंकड़ों के अनुसार 40 से 50 साल पुराने 22,829 मामले, 30 से 40 साल पुराने 63,239 मामले, 20 से 30 साल पुराने 3.4 लाख मामले और 10 से 20 साल पुराने 11.5 लाख मामले अभी भी हाईकोर्ट में पेंडिंग है. 


सबसे पुराना केस 74 साल से पेंडिंग


देश का सबसे पुराना केस 1951 में दाखिल हुआ था और यह अब भी पेंडिंग है यानी यह केस 74 साल से न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अनुसार इन केसों के इतने साल तक पेंडिंग रहने की कई वजह हैं. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कहते हैं कि मामलों की जटिलता और फैक्ट्स की बारिकियों की वजह से भी यह मामले अटक जाते हैं. इसके अलावा वह कहते हैं की जांच एजेंसियों, गवाहों और वकीलों का सहयोग न मिलना, केस हियरिंग में देरी, न्यायालय में स्टाफ और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और समय पर नियमों और प्रक्रियाओं का पालन न होने के कारण भी यह सभी केस पेंडिंग रह जाते हैं. 


जजों की भारी कमी भी वजह 


देश के हाईकोर्ट्स में जजों की स्वीकृत संख्या 1,122 है लेकिन वर्तमान में सिर्फ 778 जज काम कर रहे हैं. यानी 344 पद खाली हैं. इन खाली पदों में से 138 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. जबकि 206 पदों पर अब तक कोई भी सिफारिश नहीं भेजी गई है.