भारत की संसद में दो सदन हैं लोकसभा और राज्यसभा. कोई भी बिल कानून बनने के लिए दोनों सदनों से होकर गुजरता है और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद कानून बनता है. ये प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुजरती है चलिए इसे जानते हैं. संसद में बिल
सबसे पहले बिल को किसी एक सदन लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जाता है. बिल दो प्रकार के होते हैं. सरकारी बिल, जो सरकार द्वारा लाए जाते हैं और निजी सदस्य बिल, जो सांसदों द्वारा पेश किए जाते हैं. बिल को पेश करने से पहले इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी लेनी होती है. इसके बाद संबंधित मंत्री या सांसद बिल को सदन में प्रस्तुत करता है. इस चरण में बिल का सामान्य परिचय होता है और इसे औपचारिक रूप से स्वीकार करने के लिए सदन में चर्चा होती है. अक्सर बिल को लेकर जनता से भी सुझाव मांगे जाते हैं.
विचार-विमर्श और समितिबिल पेश होने के बाद उस पर विस्तृत चर्चा होती है. सदन के सदस्य बिल के हर पहलू पर अपने विचार रखते हैं. कई बार बिल को गहन जांच के लिए संसदीय समिति को भेजा जाता है. ये समितियां विशेषज्ञों और हितधारकों से सलाह लेती हैं बिल की कमियों को उजागर करती हैं और सुधार के सुझाव देती हैं. समिति की रिपोर्ट के आधार पर बिल में संशोधन हो सकता है. इसके बाद बिल पर चर्चा होती है जहां हर प्रावधान पर बहस की जाती है.
मतदानचर्चा पूरी होने के बाद बिल को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए सांसदों की वोटिंग कराई जाती है. इसे पास करने के लिए साधारण बहुमत की जरूरत होती है यानी उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत. हालांकि, संविधान संशोधन बिल जैसे विशेष मामलों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए. अगर बिल एक सदन में पास हो जाता है, तो उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है. जहां यही प्रक्रिया दोहराई जाती है.
राष्ट्रपति की स्वीकृति जब दोनों सदन बिल को मंजूरी दे देते हैं तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति तीन विकल्प चुन सकते हैं. बिल को मंजूरी देना, उसे वापस भेजना या कुछ समय के लिए रोकना. सामान्य बिल को वापस भेजने पर संसद दोबारा विचार कर सकती है, लेकिन अगर दोनों सदन फिर से पास कर दें, तो राष्ट्रपति को मंजूरी देनी होती है. मंजूरी मिलने के बाद बिल कानून बन जाता है.
कानून बनना राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बिला कानून बन जाता है. इसे गजट में प्रकाशित करके सरकार अधिसूचना जारी करके देशभर में लागू कर दिया जाता है.
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