भारत के आजाद होने के बाद से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष आज तक चला आ रहा है. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन की सदस्यता को मान्यता दे दी गई है. फिलिस्तीन के एक नेता हुआ करते थे, जिनका नाम है यासिर अराफात. मिडिल ईस्ट के देशों में यासिर अराफात का कद और उनकी सियासत की विरासत इस कदर है कि लोग उनकी मौत के 10 साल के बाद भी उन पर चर्चा करते हैं. भारत के साथ उनके रिश्ते अच्छे थे.
दरअसल कांग्रेस ने हमेशा से फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन किया था, इसीलिए यासिर अराफात के रिश्ते इंदिरा गांधी के साथ भी बहुत अच्छे थे. वो इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे. एक बार यूएन में भाषण देने के लिए वो अपने साथ रिवॉल्वर लेकर गए थे. आइए जानें कि यह बात कितनी सच है.
संयुक्त राष्ट्र में लेकर गए थे पिस्टल!
यासिर अराफात के मुख्य राजनीतिक सलाहकार हनी हसन की मानें तो अराफात जहां भी जाते थे, वह वहां पर बैठने से पहले हर एंगल से सोचते थे कि किस एंगल से उन पर गोली चलाई जा सकती है. वो एक जगह स्थिर होकर नहीं बैठते थे और अचानक बैठने की जगह बदल लेते थे. अराफात की आदत थी, वो हमेशा कमर पर पिस्टल लटकाकर चलते थे. जब वह पहली बार संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने के लिए गए तो उनको कहा गया कि सभागार में हथियार ले जाने की इजाजत नहीं है. लेकिन फिर इस बात पर समझौता हुआ कि वह अपनी वर्दी पर पिस्टल का होल्सटर लगाए रहेंगे, लेकिन उसमें पिस्टल नहीं होगी.
जोर से गले लगने की थी आदत
सीताराम येचुरी जो कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हुआ करते थे, उनसे यासिर अराफात को कई बार मिलने का मौका मिला था. एक बार सीताराम येचुरी ने बताया था कि अराफात को फिदेल कास्त्रो की तरह जोर से गले मिलने की आदत थी. एक बार जब वह काहिरा में मुझसे इसी तरीके से मिले तो मेरे पास बहुत अच्छा मौका था कि मैं उनक पिस्टल निकाल लूं. मैंने उनको कहा भी था कि आप सावधान क्यों नहीं रहते, ऐसे तो कोई भी पिस्टल निकाल सकता है.
खाली पिस्टल क्यों रखते थे अराफात
इस पर यासिर अराफात ने उनको कहा था कि एक राज की बात बताऊं, इस पिस्टल में गोली नहीं है. यह खाली है. जब उनको मैंने यह पूछा कि आप खाली पिस्टल क्यों रखते हैं, इस पर अराफात ने कहा था कि इसके पीछे का कारण हैं मेरे दुश्मन. ऐसे में जो मुझ पर गोली चलाना चाहते हैं, वो ऐसा करने से पहले सौ बार सोचते हैं.
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