आज पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है, जिसे यौम-ए-आजादी कहा जाता है. यह वह एतिहासिक पल है, जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने थे. 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत के साथ-साथ पाकिस्तान का जन्म हुआ था. यह दिन सिर्फ राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि करोड़ों लोगों के बलिदान और संघर्षों का प्रभाव था. मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता था. पाकिस्तान को अलग देश बनाने में जिन्ना का अहम रोल रहा है. चलिए जानें कि आखिर धर्म के आधार पर पाकिस्तान का गठन करने वाले जिन्ना कितनी बेदर्दी से मरे थे.

चेन स्मोकर थे जिन्ना

मोहम्मद अली जिन्ना धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक मुसलमान थे, जो कि उनकी लाइफस्टाइल में नजर आता था. जिन्ना की लग्जरी लाइफस्टाइल में स्मोकिंग भी अहम हिस्सा था. जिन्ना चेन स्मोकर थे और दिन में करीब 50 सिगरेट पी जाते थे. इसके अलावा सिगार के कश लेना भी उनके लाइफस्टाइल का हिस्सा था. 1935 में जब वे लंदन से भारत लौटे थे तभी उनको अपनी खराब सेहत का अंदाजा लग चुका था. पिछले 50 सालों में लगातार सिगरेट और सिगार की वजह से जिन्ना की खांसी बहुत बढ़ गई थी. खांसते-खांसते बलगम के साथ कफ और खून भी निकलता था. इसके साथ ही शरीर पर चकत्ते निकल आए थे और बुखार के साथ-साथ कमजोरी भी थी.

दिन-ब-दिन बिगड़ रही थी हालत

जिन्ना ने अपनी बीमारी का रहस्य दबाए रखा था. जिन्ना के साथ साए की तरह रहने वाली उनकी बहन फातिमा जब अपने भाई को डॉक्टर के पास लेकर गईं तो डॉक्टर को पता चल गया था कि जिन्ना को टीबी है. जिन्ना की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी. 11 सितंबर 1948 शाम के करीब सवा चार बज रहे थे. उस वक्त एक स्पेशल विमान मौरीपुर एयरपोर्ट पर लैंड हुआ. इस विमान में बीमार और अपनी आखिरी सांसें गिनते जिन्ना थे. एक साल पहले जब जिन्ना यहां उतरे थे, तो वे अपने पैरों पर चलकर आए थे और उनको देखने के लिए एयरपोर्ट पर हजारों लोग जमा थे. लेकिन इस बार न नारे थे, न भीड़, एयरपोर्ट पूरी तरह से सुनसान था.

मुंह पर मंडरती मक्खियां, भीषण गर्मी और खराब एंबुलेंस

उस दिन सिर्फ एक मिलेट्री अफसर उनको लेने के लिए आया था. स्ट्रैचर पर उनको प्लेन से उतारकर सीधे मिलेट्री ऐम्बुलेंस में लिटाया गया, जो कराची की ओर धीरे-धीरे चली, ताकि उनको झटके न लगें. रास्ता सिर्फ 30 मिनट का था, लेकिन आधे सफर में ऐम्बुलेंस अचानक रुक गई, क्योंकि उसका पेट्रोल खत्म हो गया था. जिन्ना स्ट्रैचर पर पड़े थे और उसके मुंह पर मक्खियां मंडरा रही थीं. कराची में आमतौर पर समुद्र से ठंडी हवा आती है, लेकिन उस दिन हवा बिल्कुल नहीं थी. भीषण गर्मी और सड़क पर रुकी ऐम्बुलेंस ने जिन्ना की हालत बद से बदत्तर कर दी थी. 

हर गुजरता मिनट जिन्ना को जिंदगी से दूर कर रहा था

मोहम्मद अली जिन्ना पहले से ही बहुत बीमार थे, ऊपर से गर्मी ने उनको और कमजोर बना दिया था. उनके पास बैठी बहन फातिमा और नर्स डनहम बारी-बारी से पंखा झल रही थीं, ताकि उनको गर्मी से थोड़ी राहत मिल सके. दूसरी ऐम्बुलेंस का इंतजार लंबा होता जा रहा था, और हर गुजरता मिनट जिन्ना को जैसे जिंदगी से और दूर धकेल रहा था. लंबे इंतजार के बाद दूसरी ऐम्बुलेंस आई और जिन्ना को गर्वनर जनरल के बंगले ले जाया गया. तब डॉक्टरों ने उनकी जांच की और बताया कि प्लेन की थकाऊ यात्रा और ऐम्बुलेंस में गर्मी में फंसे रहने से उनका शरीर कमजोर हो गया है और अब उनके ठीक होने की उम्मीद बहुत कम है.

…और फिर नहीं रहे जिन्ना

डॉक्टर वहां से चले गए और मोहम्मद अली जिन्ना अपनी बहन के पास सोते रहे. करीब दो घंटे बाद उन्होंने अपनी आंखें खोलीं, बहन को पास बुलाया और धीमी आवाज में अपने आखिरी शब्द कहे- ‘फाति, खुदा हाफिज ला इलाहा इलल्लाह..मुहम्मद..रसूल..अल्लाह.’ इतना कहते ही उनकी आंखें हमेशा के लिए बंद हो गईं और वे अल्लाह को प्यारे हो गए.

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