पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को लेकर पिछले कुछ दिनों से चल रही चर्चाओं और अफवाहों पर अब रावलपिंडी की अदियाला जेल प्रशासन ने स्पष्ट बयान जारी कर दिया है. जेल अधिकारियों ने साफ कहा है कि इमरान खान को कहीं भी स्थानांतरित नहीं किया गया है और न ही उनकी सेहत को लेकर कोई आपात स्थिति है.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की ओर से लगाए गए उन दावों को भी जेल प्रशासन ने पूरी तरह नकार दिया है, जिनमें कहा गया था कि खराब तबीयत के चलते इमरान खान को किसी दूसरी सुविधा में भेज दिया गया है. बता दें कि इमरान खान रावलपिंडी की आदियाला जेल में कैद हैं. आइए जानें कि यहां किस पूर्व पीएम को फांसी की सजा सुनाई गई थी.
किसे हुई थी फांसी
यह घटना पाकिस्तान के इतिहास में सबसे विवादित और चर्चा में रहने वाली राजनीतिक घटनाओं में से एक है. पाकिस्तान के पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो को पुरानी रावलपिंडी जेल में फांसी की सजा हुई थी. यह फांसी न सिर्फ एक कानूनी फैसले के रूप में, बल्कि एक राजनीतिक मोड़ के रूप में भी देखी जाती है, जिसने आने वाले कई दशकों तक पाकिस्तान की राजनीति, लोकतंत्र और सेना के प्रभाव को गहराई से प्रभावित किया. हालांकि जुल्फिकार अली भुट्टो को जिस जेल में फांसी हुई थी, उसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया था.
जुल्फिकार अली भुट्टो कौन थे?
जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली और करिश्माई नेताओं में गिने जाते हैं. उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) की स्थापना की और 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद पाकिस्तान को दोबारा खड़ा करने में प्रमुख भूमिका निभाई. वे पहले राष्ट्रपति (1971–1973) और बाद में प्रधानमंत्री (1973–1977) रहे. उनके नेतृत्व में पाकिस्तान ने न्यूक्लियर प्रोग्राम की नींव रखी और कई बड़े सामाजिक व आर्थिक सुधार शुरू किए.
फांसी तक पहुंचने वाली राजनीतिक पृष्ठभूमि
1977 में हुए आम चुनावों में PPP ने भारी जीत का दावा किया, लेकिन विपक्ष ने चुनावों को धांधलीपूर्ण बताया. स्थिति बिगड़ती गई और तब सेना प्रमुख जनरल जिया-उल-हक ने 5 जुलाई 1977 को भुट्टो की सरकार को तख्तापलट कर गिरा दिया. तख्तापलट के बाद भुट्टो को गिरफ्तार किया गया और उन पर 1974 में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था.
शुरू से ही विवादों में रहा उनके खिलाफ चला मुकदमा
उनके खिलाफ मुकदमों में गवाहों के बयान बदलते रहे, अदालत के फैसले को राजनीतिक माना गया, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे judicial murder कहा गया. कई देशों ने सजा रद्द करने की अपील की, लेकिन सुनवाई के हर चरण में फैसले भुट्टो के खिलाफ ही लिखे गए.
वह रात जब इतिहास बदल गया
रावलपिंडी की उसी पुरानी जेल में, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया, भुट्टो को 4 अप्रैल 1979 को तड़के फांसी दी गई. इससे पहले परिवार के लिए भी आखिरी मुलाकात सीमित समय के लिए ही दी गई थी. उनकी राजनीतिक लोकप्रियता के कारण सरकार ने फांसी की प्रक्रिया को बेहद गुप्त रखा था. रात को ही सेना की निगरानी में दफनाने तक की व्यवस्था की गई थी.
इस फैसले ने पाकिस्तान की राजनीति में सेना के बढ़ते प्रभाव को उजागर कर दिया और आज भी इसे पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया पर एक दाग माना जाता है.
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