Passport Free Travel: यात्रा की स्वतंत्रता एक ऐसा खास अधिकार है जिसे हम में से ज्यादातर लोग काफी सहजता से लेते हैं. लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें पासपोर्ट और वीजा की इस जटिल प्रक्रिया से बचने की पूरी सुविधा है. हैरानी की बात यह है कि सिर्फ तीन लोग ही बिना पासपोर्ट के अंतरराष्ट्रीय यात्रा कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि इन तीन लोगों में किसका नाम शामिल है और क्या इसमें कोई भारतीय भी है.

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इन लोगों के पास विशेष अधिकार 

यूनाइटेड किंगडम के किंग चार्ल्स तृतीया, जापान के सम्राट नारुहितो और जापान की महारानी मसाको के पास ही यह विशेष अधिकार है. इसका मतलब है कि किसी भारतीय का नाम इसमें शामिल नहीं है. दरअसल यूनाइटेड किंगडम में पासपोर्ट किंग के नाम से जारी किए जाते हैं. जिस पर 'महामहिम का पासपोर्ट' लिखा होता है. इसका मतलब है कि राजा को स्वयं पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह देश के संप्रभु हैं. महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के शासनकाल में भी यही खास अधिकार लागू था. उनके पास भी कभी पासपोर्ट नहीं रहा. 2023 में चार्ल्स के राज्याभिषेक के बाद इस छूट को फिर से मजबूत कर दिया गया. इस छूट के अंतर्गत उन्हें 190 से ज्यादा देशों में बिना किसी कागजी कार्रवाई के प्रवेश की अनुमति मिलती है. 

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जापान के सम्राट और महारानी को विशेष अधिकार 

जापान अपने शाही परिवार के लिए भी ठीक इसी तरह की व्यवस्था का पालन करता है. जापान के संविधान के तहत प्रतीकात्मक संप्रभु, सम्राट नारुहितो और महारानी मसाको पासपोर्ट प्राप्त नहीं करते हैं. उनकी अंतरराष्ट्रीय यात्राएं जापानी विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित राजनीतिक प्रोटोकॉल के तहत आयोजित की जाती है. 

असाधारण राजनयिक विशेषाधिकार

इन शाही परिवारों को न सिर्फ बिना पासपोर्ट के यात्रा करने का आनंद मिलता है बल्कि उन्हें राजनयिक प्रतिरक्षा भी प्राप्त है. यह खास अधिकार उन्हें विदेश में गिरफ्तारी या कानूनी जांच से बचाता है. इन शक्तियों के बावजूद वे शायद ही कभी इनका अनुचित इस्तेमाल करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे लोगों को राजनयिक पासपोर्ट का लाभ मिलता है लेकिन वीजा संबंधी औपचारिकताओं से उन्हें भी गुजरना पड़ता है. इन राजघरानों की पासपोर्ट मुक्त यात्रा देश के बीच द्विपक्षीय समझौतों को और भी मजबूत करती हैं. वे 190 से ज्यादा देशों में बिना किसी बाधा के प्रवेश कर सकते हैं क्योंकि मेजबान देश उनकी संप्रभुता या औपचारिक स्थिति को मान्यता देते हैं.

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