भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के बाद कई चीजें तेजी से बदल रही हैं. इसमें दो देशों के तल्ख रिश्तों से लेकर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम तक शामिल हैं. दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच टकराव के बाद 'जियो पॉलिटिक्स' में हो रहा यह बदलाव डिप्लोमैट्स और राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए नया नहीं है, वे इससे वाकिफ हैं और इसका तजुर्बा भी है. हालांकि, दो देशों की लड़ाई मिठाइयों तक पहुंच जाए तो बड़े-बड़े 'राजनीति के समझदारों' का दिमाग भी चकरा जाएगा. इधर-उधर की बात न करते हुए हम मुद्दे पर आते हैं.
दरअसल, भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के बाद जयपुर में कुछ दुकानों पर मिठाइयों के नाम बदल दिए गए हैं. इनमें वे मिठाइयां शामिल हैं, जिनके आखिरी में 'पाक' आता है, जैसे- मोतीपाक, केसरपाक, मैसूरपाक. अब इन मिठाइयों के नामों से 'पाक' हटाकर 'श्री' लगा दिया गया है. इस तरह ये मिठाइयां हो गई हैं- 'मोतीश्री', 'केसरश्री', 'मैसूरश्री' 'चांदी भस्म श्री' और 'स्वर्ण भस्म श्री'.
अब जयपुर में हुए इस घटनाक्रम ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींच लिया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मिठाइयों के जिस 'पाक' को पाकिस्तान से जोड़ा जा रहा है, वह संस्कृत और भारतीय धर्मशास्त्रों का हिस्सा रहा है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि पाकिस्तान के 'पाक' और संस्कृत के 'पाक' के बीच कोई रिश्ता है भी या यूं ही हंगामा बरपा है.
पहले पाकिस्तान के 'पाक' को समझ लीजिए
कहते हैं अर्थ का अनर्थ होने में देर नहीं लगती है. ऐसा ही इस 'पाक' शब्द के साथ हुआ है. मिठाइयों में पाक का मतलब कुछ और था, समझ कुछ और लिया गया. खैर, आपके आसपास अगर मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं तो आपने 'पाक' शब्द का इस्तेमाल होते हुए बहुत सुना होगा. जैसे- हाल ही में बीते रमजान के लिए, जिन्हें 'पाक' महीना कहा जाता है. इसी तरह मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ने से पहले खुद को 'पाक' करते हैं. यहां समझने वाली बात यह है कि यह 'पाक' शब्द संस्कृत के 'पाक' से काफी अलग है. इसका मूल फारसी भाषा है, जिसका अर्थ है- पवित्रता, शुद्धता. इस तरह रमजान का पाक महीने का मतलब हो गया रमजाम का पवित्र महीना और खुद को पाक करने का मतलब-खुद को पवित्र या शुद्ध करना. जैसा कि हम पूजा-पाठ से पहले करते हैं, उसी तरह मुस्लिम नमाज पढ़ने से पहले. इसी तरह 'पाकिस्तान' का अर्थ हो गया 'पवित्र भूमि वाला स्थान'.
अब आते हैं संस्कृत वाले 'पाक' शब्द पर
अब तक आपने पाकिस्तान के 'पाक' शब्द का मतलब समझ ही लिया होगा, यह भी जान गए होंगे कि मिठाइयों के संदर्भ में जिस 'पाक' को पाकिस्तान से जोड़ा गया, वह कुछ और ही है. असल में संस्कृत में 'पाक' का अर्थ है-पकाना या भोजन बनाने की क्रिया. आपने पाक कला या पाक शास्त्र के बारे में तो सुना ही होगा. यह शब्द संस्कृत का शब्द होने के साथ-साथ हमारे वेदों का भी हिस्सा रहा है और यजुर्वेद में इसका उल्लेख भी मिलता है, जिसमें एक शब्द है 'पिष्टपाक', जिसका अर्थ है- पका हुआ आटा या पीसे हुए अनाज से बना पकवान. यानी संस्कृत से भी पहले 'पाक' शब्द का उल्लेख 'वैदिक संस्कृत' में मिलता है. इसलिए उर्दू में इस्तेमाल हुए 'पाक' और संस्कृत के 'पाक' में काफी अंतर है, हालांकि दोनों का उच्चारण एक. जैसे-
कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।वा खाए बौराय जग, वा पाए बौराय।।
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