Gas From Cow Dung: हिंदू धर्म में गाय को देवता तुल्य माना जाता है और उसकी पूजा होती है. धर्म शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि गाय में देवताओं का निवास होता है. हिंदू धर्म को मानने वाले गाय का गोबर और गोमूत्र का भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन गाय का गोबर पूजा के साथ-साथ अन्य कामों में भी इस्तेमाल किया जाता है. गाय के गोबर से बनने वाली गैस का इस्तेमाल आज चूल्हा जलाने से लेकर ट्रेन चलाने तक में किया जा रहा है. गाय के गोबर से मीथेन गैस निकलती है.
बायोगैस से जल रहे चूल्हे
गांवों में पहले के समय की तरह आज भी लोग गाय-भैंस ज्यादा तादात में पालते है. ऐसे में जानवरों के गोबर से उपले बनाकर उनका इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता था. इससे धुआं बहुत ज्यादा होता था, जो कि आंखों में लगकर परेशान करता था. ऐसे में गाय के गोबर से बायोगैस या मीथेन गैस बनने लगी है. बायोगैस बनाने के लिए इसका प्लांट लगाया जाता है और फिर घरों तक पाइप बिछाकर उसके जरिए किचन में चूल्हा जलाने का काम करते हैं. आमतौर पर घरों में इस्तेमाल होने वाली एलपीजी गैस की तुलना में बायोगैस ज्यादा सस्ती पड़ती है. इसीलिए गांव के लोगों को इससे बहुत फायदा मिलता है.
बसों और ट्रेनों का भी हो रहा संचालन
इसके अलावा मीथेन गैस से खास तौर से बायो मीथेन से ब्रिस्टल में बसें भी चल रही हैं. वहां पर एक बायो मीथेन गैस बस फिलिंग स्टेशन खुला है. इन बसों में बायो मीथेन गैस के जरिए ईंधन भरा जाता है. यह मानव अपशिष्ट से बनी मीथेन को बिजली में बदलती है और फिर उससे बैटरी चार्ज होती है, जिससे कि ट्रेनें भी चलती हैं. कतर में सबसे बड़ी एलएनजी ट्रेनें भी चल रही हैं. इनका संचालन कतर गैस, कोनोकोफिलिप्स, शेल और एक्सॉनमोबिल द्वारा किया जाता है.
जापान ने गाय के गोबर से बनाया हाइड्रोजन फ्यूल
हाल ही में जापान ने सस्टेनेबिलिटी की तरफ बेहतरीन कदम बढ़ाते हुए पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल पेश की है. जापान गाय के गोबर से हाइड्रोजन फ्यूल का निर्माण कर रहा है, जिससे कि ट्रैक्टर और कार चलाए जा रहे हैं. जापान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी प्रक्रिया तैयार की है जो कि गाय के गोबर को फ्यूल में बदल रही है. इसके जरिए वेस्ट को मैनेज किया जा सकता है, साथ ही यह ग्रीन एनर्जी का समाधान भी है.