मेवाड़ के शूरवीर योद्धा महाराणा प्रताप ऐसे वीर थे जिन्होंने मुगलों की अधीनता कभी स्वीकार नहीं की और न ही उनके आगे घुटने टेके. अकबर जैसे सम्राट दुश्मन होने के बाद भी महाराणा प्रताप के कायल हुआ करते थे. युद्ध भूमि में महाराणा प्रताप अच्छे-अच्छे योद्धाओं को धूल चटा देते थे. हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि वो युद्ध के मैदान में दुश्मन के लिए भी तलवार लेकर उतरते थे. चलिए इसकी वजह जानते हैं.


बचपन से ही घुड़सवारी और तलवारबाजी में थे कुशल
महाराणा प्रताप का बचपन भीलों के बीच ज्यादा बीता था. जहां भील अपने बच्चों को कीका कहकर बुलाते थे तो वहीं महाराणा प्रताप को भी बचपन में इसी नाम से संबोधित किया जाता था. महाराणा प्रताप बचपन से ही घुड़सवारी और तलवारबाजी में काफी कुशल थे.


क्यों दुश्मन के लिए भी रखते थे तलवार?
महाराणा प्रताप की ये खूबी थी कि वो अपनी म्यान में दो तलवारें रखते थे. एक तलवार वो अपने लिए रखते तो वहीं दूसरी दुुश्मन के लिए. दरअसल उन्हें बचपन से ही उनकी मां ने नसीहत दी थी कि कभी निहत्थे दुश्मन पर भी वार नहीं किया जाता. यही वजह थी कि वो दो तलवार रखते थे. यदि दुश्मन के पास  तलवार नहीं होती थी तो वो अपने पास सेे उसे तलवार देते थे और फिर युद्ध के लिए ललकारते थे.


कभी नहीं किया निहत्थे शत्रु पर वार
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में हमेशा मर्यादाओं का पालन किया और कभी निहत्थे शत्रु पर वार नहीं किया. हल्दीघाटी के युद्ध से पहले शाम को जब महाराणा प्रताप को गुप्तचरों से सूचना मिली कि मानसिंह कुछ साथियों के साथ शिकार पर है और लगभग निहत्था है, तो उस वक्त प्रताप ने कहा था कि निहत्थे पर कायर वार करते हैं हम योद्धा हैं, कल हल्दीघाटी में मानसिंह का सिर कलम करेंगे. महाराणा प्रताप ने अपनी सेना में धर्म को कभी तवज्जो नहीं दी, आपको जानकर हैरानी होगी कि उनकी विशाल सेना में भील से लेकर मुस्लिम तक शामिल थे.   


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