कल्पना कीजिए ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से बस 10 किलोमीटर दूर एक विशाल रनवे पर भारत के हेलिकॉप्टरों की गड़गड़ाहट गूंजती थी. बर्फीली चोटियों के बीच भारतीय वायुसेना का तिरंगा फहराता था. यह था अयनी एयरबेस, भारत का वह गुप्त लेकिन गौरवशाली ठिकाना जो कभी मध्य एशिया में भारत की रणनीतिक ताकत का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब यह कहानी खत्म हो चुकी है. सवाल यही है कि क्यों? और यहां कितने करोड़ रुपये खर्चा हुए थे, चलिए जानें.

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भारत का पहला विदेशी सैन्य अड्डा

दरअसल, भारत का यह पहला और इकलौता विदेशी सैन्य अड्डा था, जिसे भारत ने न सिर्फ विकसित किया था, बल्कि लगभग दो दशक तक संचालित भी किया. यह ठिकाना अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और रूस जैसे चार बड़े भू-राजनीतिक खिलाड़ियों के बीच स्थित था. यानी अगर रणनीति की बिसात देखी जाए, तो अयनी एयरबेस भारत की कूटनीतिक क्वीन की तरह था. 

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लेकिन, अब खबर आई कि भारत ने यह बेस पूरी तरह खाली कर दिया है. केंद्र सरकार ने इसकी पुष्टि भी कर दी. जैसे ही यह बात सामने आई तो विपक्ष ने सवाल उठाए कि क्या भारत ने अपनी अंतरराष्ट्रीय रणनीति कमजोर कर दी है?

क्यों बंद हुआ अयनी एयरबेस?

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ताजिकिस्तान ने लीज एग्रीमेंट बढ़ाने से इनकार कर दिया. इसके लिए कहा गया कि रूस और चीन के दबाव के चलते यह फैसला हुआ. चीन नहीं चाहता था कि भारत उसकी बैकयार्ड कहे जाने वाली मध्य एशिया में सैन्य उपस्थिति रखे. वहीं, रूस ताजिकिस्तान में अपनी मौजूदगी घटते नहीं देखना चाहता था.

इसके लिए कितने करोड़ रुपये हुए थे खर्चा?

भारत ने इस एयरबेस को तैयार करने में करीब 10 करोड़ डॉलर (लगभग 800 करोड़ रुपये) खर्च किए थे. सीमा सड़क संगठन (BRO) ने यहां हवाई पट्टी को 3,200 मीटर तक बढ़ाया, आधुनिक हैंगर बनाए, फ्यूलिंग सिस्टम तैयार किया और मरम्मत सेंटर स्थापित किया था. इस बेस पर भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर और कुछ सैन्य कर्मी भी तैनात थे. कहा जाता है कि 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के लौटने के बाद इस बेस की रणनीतिक अहमियत कम हो गई. भारत ने 2022 से धीरे-धीरे अपने जवान और उपकरण वापस बुलाने शुरू कर दिए.

क्या खोया, क्या पाया?

अयनी बेस भारत के लिए सिर्फ एक एयरबेस नहीं था, बल्कि एक आईप्वाइंट था, जहां से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन पर नजर रखी जा सकती थी. यहां से भारत पीओके (PoK) तक की हर गतिविधि मॉनिटर कर सकता था. युद्ध की स्थिति में यह बेस पाकिस्तान के लिए सिरदर्द साबित हो सकता था, क्योंकि यहां से भारत पेशावर तक निशाना साध सकता था. लेकिन अब इस पर ताला लग चुका है. रणनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने फिलहाल पीछे हटकर नई स्थिति को परखने की रणनीति अपनाई है. यह किसी पराजय से ज्यादा नीति में बदलाव का संकेत भी हो सकता है.

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