लाहौर की गलियों से जुड़ा बुलाकी शाह का नाम आज फिर सुर्खियों में है. कभी वे इतने बड़े साहूकार थे कि अमीर जमींदार भी उनके कर्जदार माने जाते थे. उनके बहीखातों में बड़े-बड़े रईसों के अंगूठे और दस्तखत दर्ज थे. कहा जाता है कि उनका खौफ इतना था कि बच्चे तक कांप जाते थे, लेकिन जरूरतमंद महिलाओं को वे सम्मान के साथ मदद भी देते थे.
अब हाल ही में एक किताबों चर्चा में है, जिसमें उनके किस्सों का जिक्र है. इन्हीं किस्सों ने एक बार फिर उनके नाम को जिंदा कर दिया है. आइए जानें कि बुलाकी शाह कौन है…उनका खौफ क्या था और उनकी अमीरी कैसी थी. चलिए इस बारे में विस्तार से समझते हैं.
इतिहास के बड़े साहूकार थे
लाहौर के इतिहास में बुलाकी शाह का नाम बड़े साहूकार के रूप में आज भी याद किया जाता है. उस दौर में जब पैसे की तंगी और सामाजिक रस्मों को निभाने के लिए लोग कर्ज लेने पर मजबूर होते थे तब बुलाकी शाह जैसे साहूकार ही उनकी आखिरी उम्मीद बनते थे. वे न केवल अमीर जमींदारों बल्कि मध्यमवर्गीय परिवारों और खासकर महिलाओं तक की मदद करने के लिए मशहूर थे.
महिलाओं को देते थे खास इज्जत
बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो बुलाकी शाह के पास हर वर्ग का इंसान पहुंचता था. उनके रजिस्टर यानी बहीखाते में बड़े-बड़े जमींदारों के अंगूठे और हस्ताक्षर दर्ज थे. खास बात यह थी कि वे महिलाओं को बहुत इज्जत और सम्मान देते थे. उनके यहां महिलाओं के लिए अलग बैठक का इंतजाम होता, जहां वे अपनी जरूरत बतातीं, चाहे शादी हो, कोई उत्सव या अचानक कोई खर्चा. अगर कोई आभूषण गिरवी रख देता तो बुलाकी शाह निश्चिंत होकर रकम दे देते थे. यही कारण था कि वे साहूकारों में एक मिसाल बन गए थे.
ये था बुलाकी शाह की अमीरी का आलम
बुलाकी शाह की अमीरी की बात करें तो उनकी सूझबूझ और सख्ती का एक किस्सा टबी बाजार से जुड़ा हुआ है. जब उन्हें मालूम हुआ कि उनका बेटा अक्सर वहां जाने लगा है, तो एक रात वे खुद भी वहां पहुंच गए और बेटे के सामने बैठ गए. बेटा नाचनेवालियों पर जितना खर्च करता, बुलाकी शाह तुरंत उससे दोगुना खर्च करके उसकी औकात का आईना दिखा देते थे. धीरे-धीरे बेटे को एहसास हुआ कि वहां किसी को उसकी शख्सियत से नहीं, बल्कि सिर्फ दौलत से मतलब है.
इसके बाद उसने टबी बाजार जाना छोड़ दिया. तब नुकसान झेल रहे गली के लोगों ने प्रतिनिधिमंडल भेजकर बुलाकी शाह से मिन्नत की कि वे अपने बेटे को टबी बाजार भेज दें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया और लौटाई गई रकम तक स्वीकार नहीं की.
बुलाकी शाह की नजरों का खौफ
लोगों में बुलाकी शाह का खौफ उनकी इमारत देखकर ही हो जाता था. बच्चे तक उनके नाम से सहम जाते थे. उनके खौफ का आलम यह था कि अगर कोई बच्चा, बुजुर्ग या कोई अन्य शख्स उनकी इमारत के बाहर से निकल रहा है, तो वो बुलाकी शाह को सिर झुकाकर सलाम जरूर करता था. बच्चों पर तो कई बार उनका डर इतना हावा हो जाता था कि अगर बुलाकी शाह ने नजर बच्चे पर पड़ जाए तो वो खड़े-खड़े पेशाब कर देता था. लेकिन बुलाकी शाह सलाम का जवाब हंसते हुए देते और बच्चों को आशीर्वाद देते थे.
कई बार अदालत के भी लगे चक्कर
बुलाकी शाह के पास अमीरों की जमीनें तक गिरवी पड़ी रहती थीं. यही नहीं कई बार इस चक्कर में अदालतों तक भी पहुंचना पड़ा था. अक्टूबर 1901 के सिविल जजमेंट्स में दर्ज एक केस के मुताबिक, उन्होंने रेलवे के यूरोपीय अधिकारी टी. जी. एकर्स को 1500 रुपये तीन प्रतिशत ब्याज पर उधार दिए थे. एकर्स ने ब्याज तो चुका दिया, लेकिन मूल रकम नहीं लौटाई. मामला अदालत में पहुंचा, जहां कोर्ट ने ब्याज की दर को अत्यधिक बताया, मगर क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट एकर्स ने ही लिखा था, बुलाकी शाह को आखिरकार 2065 रुपये मिले.
विभाजन ने बदल दी जिंदगी
भारत-पाकिस्तान विभाजन ने बुलाकी शाह की जिंदगी भी बदल दी. कहा जाता है कि दंगों के दौरान उनके एक बेटे की हत्या कर दी गई. इसी सदमे ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया था. रिपोर्ट्स की मानें तो आखिरी दिनों में वे असामान्य हो गए थे और उनके बहीखातों के पन्ने लाहौर के गुमटी बाजार की नालियों में बहते देखे गए थे. विभाजन के बाद बहुत से कर्जदार पाकिस्तान में ही रह गए और रकम वापस न मिल सकी.
आज खंडहर में बदल गई सबसे बड़े साहूकार की इमारत
आज के दौर में लाहौर के गुमटी बाजार में उनकी पुरानी इमारत खंडहर में बदल चुकी है. वहां अब जूतों की दुकान और रंग-केमिकल का कारोबार होता है. बुलाकी शाह का नाम अब कहानियों और दस्तानों में ही जीवित है. वे सिर्फ एक साहूकार नहीं, बल्कि उस दौर के सामाजिक ताने-बाने का अहम हिस्सा थे, जहां कर्ज, भरोसा और इज्जत का रिश्ता साथ-साथ चलता था.
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