हर साल 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं. लाल किला भारत की आन-बान-शान का प्रतीक है, जो मुगलकालीन वास्तुकला और स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को अपने में समेटे हुए है. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा दिल्ली के लाल किले पर गर्व के साथ फहराया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि 1857 की क्रांति के बाद लाल किले में कौन रहता था. इसे अपना आशियाना किसने बनाया था? आइये जानते हैं.
लाल किले का इतिहासमुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं सदी में लाल किले को बनवाया था. इस किले को सम्राट की शक्ति और भव्यता के प्रतीक के रूप में बनाया गया था. ये किला शुरू से ही सत्ता का केंद्र रहा है. लाल किला ने 1857 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य किया है. ऐसे में ये भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है. अंग्रेजों ने इसपर कब्जा कर अपना झंडा लगा दिया था. साल 15 अगस्त, 1947 में देश आजाद हुआ तो भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से पहली बार अंग्रेजी हुकूमत का झंडा उतारकर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया और स्वतंत्र भारत की शुरुआत की थी.
1857 की क्रांति के बाद किसने बनाया आशियाना
1857 में अंग्रेजों के खिलाफ देशभर में विद्रोह हुआ. मई में मेरठ से विद्रोह हुआ और विद्रोहियों ने लाल किले पर कब्जा कर लिया. लेकिन 4 महीने बाद ही अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर लिया. अंग्रेजों ने इसे अपने सैन्य मुख्यालय के रूप में उपयोग करना शुरू किया. किले के अंदर बने कई शाही महल और उद्यान नष्ट कर दिए गए. करीब 80 प्रतिशत मंडप और संरचनाएं ब्रिटिशों द्वारा ध्वस्त कर दी गईं और किला एक सैन्य छावनी में बदल गया. इस दौरान लाल किले में ब्रिटिश सैनिक और अधिकारी यहां तैनात थे.
लाल किला नाम कैसे पड़ा? लाल पत्थरों से बना होने के कारण इसे लाल किला कहा जाने लगा लेकिन इसका दूसरा नाम किला ए मुबारक था. मुगल परिवार लाल किले में 200 साल तक रहे लेकिन 1857 की क्रांति के बाद यहां ब्रिटिश ने कब्जा कर लिया. लाल किले का महत्व लाल किला सिर्फ एक इमारत नहीं बल्कि भारत की आजादी और गौरव का प्रतीक है. यह हमें हर साल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है. लाल किले मे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई यादें यहां संजोई गई हैं. लाल किला न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यहां की विशाल प्राचीर और दीवान-ए-आम इसे राष्ट्रीय समारोहों के लिए उपयुक्त बनाते हैं. इसे भी पढ़ें- ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या होता है फर्क, 15 अगस्त से पहले जान लें यह बात