टेक्निकल प्रॉब्लम के कारण फ्लाइट का टेकऑफ रुकना यह ना केवल यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बनता है, बल्कि एयरलाइंस और विमानन उद्योग को भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. आइए जानते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या होता है और इसका कितना बड़ा प्रभाव पड़ता है. हाल के महीनों मे भारत और विश्वभर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां तकनीकी खराबी के कारण फ्लाइट्स को टेकऑफ से पहले रोकना पड़ा या उड़ान के बाद आपातकालीन लैंडिंग करानी पड़ी.  टेकऑफ के समय गड़बड़ी होने पर क्या होता है?

तकनीकी समस्याएं कई रूपों में हो सकती हैं जैसे इंजन फेल होना, फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम में गड़बड़ी. टेकऑफ के दौरान विमान सबसे संवेदनशील स्थिति में होता है, क्योंकि इस समय इंजन और सिस्टम पर सबसे ज्यादा दबाव होता है. अगर कोई भी खराबी पकड़ में आती है तो पायलट और एयर ट्रैफिक कंट्रोल तुरंत टेकऑफ रोकने का फैसला लेते हैं. यह सुरक्षा के लिए जरूरी है लेकिन इसका आर्थिक और परिचालन प्रभाव गहरा होता है.

इतना होता है नुकसान

जब फ्लाइट टेकऑफ नहीं कर पाती तो एयरलाइंस को कई तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं. सबसे पहले यात्रियों को वैकल्पिक उड़ानों की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसमें नए टिकट, रिफ्रेशमेंट्स और कभी-कभी मुआवजे का खर्च शामिल होता है. इसके अलावा विमान की मरम्मत, अतिरिक्त तकनीकी जांच और रखरखाव का खर्च भी एयरलाइंस को उठाना पड़ता है.

शेड्यूल पर भी पड़ता है असर फ्लाइट कैंसल होने के बाद सिर्फ यात्रियों कोही नहीं बल्कि पायलट, केबिन क्रू, ग्राउंड स्टाफ और टेक्निकल टीम को फिर से पेमेंट देना पड़ता है. टेकऑफ में देरी से एयरलाइंस का शेड्यूल गड़बड़ा जाता है. एक फ्लाइट की देरी पूरे दिन के उड़ान कार्यक्रम को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि विमान और क्रू मेंबर्स की उपलब्धता सीमित होती है. इससे अन्य उड़ानों में भी देरी होती है, जिससे यात्री असंतुष्ट होते हैं और एयरलाइन की विश्वसनीयता पर सवाल उठते है. इसके अलावा, एयरपोर्ट पर स्लॉट की कमी के कारण अन्य विमानों को भी इंतजार करना पड़ सकता है. 

ईंधन और मेंटेनेंस

फ्लाइट को उड़ान भरने के लिए पहले से तैयार किया जाता है. उसमें फ्यूल और बाकी चीजों को देखा जाता है.  एक बार फ्लाइट में दिक्कत आने पर दोबारा फ्लेन उड़ाने से पहले मेंटेनेंस और सिक्योरिटी चेकिंग होती है जो एक्स्ट्रा खर्चा है. 

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