भारत का चंद्रयान मिशन और अन्य देशों की चांद पर बढ़ती गतिविधियों के बीच एक सवाल अक्सर उठता है कि क्या कोई देश चांद की जमीन पर अपना दावा ठोक सकता है. जैसे पृथ्वी पर देश अपनी सीमाओं के लिए करते हैं? चलिए जानते हैं कि क्या कोई देश धरती की तरह चांद पर जमीन खरीद सकता है. चांद पर दावेदारी को लेकर क्या कहते हैं अंतरराष्ट्रीय नियम

क्या है नियम सबसे पहले बात करते हैं आउटर स्पेस ट्रीटी 1967 की. यह अंतरराष्ट्रीय संधि संयुक्त राष्ट्र के तहत बनी थी और इसे 100 से अधिक देशों ने हस्ताक्षर किए हैं. इस संधि के मुताबिक चांद या कोई अन्य खगोलीय पिंड किसी देश की संपत्ति नहीं हो सकता. कोई भी देश चांद पर अपनी संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता ना ही उसे कब्जा करने का अधिकार है. इसका मतलब है कि भले ही कोई देश चांद पर अपना झंडा लगाए जैसे अमेरिका ने 1969 में अपोलो 11 मिशन के दौरान किया, लेकिन यह केवल प्रतीकात्मक है और इससे मालिकाना हक नहीं मिलता.

इसके अलावा, 1979 में बनी मून ट्रीटी भी चांद पर किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि या दावेदारी पर रोक लगाती है. इसमें चांद पर खोज के अलावा किसी भी तरह की एक्टिविटी पर रोक लगाने की बात है. इसके अलावा 3 और संधियां हैं जो एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा, आउटर स्पेस में जाने वाले ऑब्जेक्ट के रजिस्ट्रेशन और स्पेस में अगर किसी मिशन की वजह से दिक्कत होती है तो संबंधित देश को उसकी जिम्मेदारी लेने को कहती है.

जमीन का दावा नहीं कर सकते कोई देश

फिर भी, कुछ देश जैसे अमेरिका और चीन चांद पर खनन की संभावनाएं तलाश रहे हैं, क्योंकि वहां प्लेटिनम और हीलियम-3 जैसे बेशकीमती संसाधन मौजूद हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत खनन से प्राप्त संसाधन उस देश के हो सकते हैं, बशर्ते वह जमीन पर दावा न करे. हालांकि ये उतना आसान नहीं दूसरे ग्रहों पर माइनिंग बेहद खर्चीली और जोखिम भार हो सकता है.

किसने खरीदी चांद पर जमीन

आपने सुना होगा कि कुछ कंपनियां, जैसे लूनर सोसाइटी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल ल्यूनर लैंड्स रजिस्ट्री चांद पर प्लॉट बेचने का दावा करती हैं. दूसरे देश के अलावा भारत में भी कई लोग चांद पर जमीन का टुकड़ा खरीद चुके हैं. जैसे दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत, ने ऐसी कंपनियों से चांद पर जमीन खरीदी थी. बता दें कि चांद पर एक एकड़ की कीमत करीब 3 हजार रुपये है. धरती के हिसाब से काफी कम है ऐसे में चांद पर प्लॉट बस फैशन या इमोशन्स जाहिर करने के लिए खरीद जा रहा है. ये कंपनियां एक तरह का स्मारिका प्रमाणपत्र देती हैं जो भावनात्मक या उपहार के रूप में लोकप्रिय है, लेकिन इसका कोई कानूनी आधार नहीं है.

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