Delhi Sultanate: दिल्ली की हर गली और हर चौराहा एक अनोखी कहानी को बयां करता है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं दिल्ली के सबसे पुराने और खूबसूरत स्थल हौज-ए-शम्सी के बारे में जिसे आज हौज खास झील के नाम से पहचाना जाता है. यह जलाशय 800 साल पुराना है. आइए जानते हैं क्या है इसका इतिहास और उसके पीछे की कहानी.

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हौज खास झील का निर्माण 

ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद सुल्तान इल्तुतमिश को एक बार सपने में दिखाई दिए. उन्होंने महरौली के जंगल में एक जगह दिखाई जहां उनके घोड़े बुराक ने अपना टाप रखा था. जब सुल्तान की नींद खुली तो वह अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शन ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के साथ उस जगह की खोज में निकल पड़े. वहां चमत्कारी रूप से मीठे पानी का एक झड़ना फूट पड़ा और सुल्तान ने भक्ति से एक विशाल जलाशय की खुदाई के आदेश दे दिए.

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हौज-ए-शम्सी नाम कैसे पड़ा?

इस जलाशय का नाम हौज-ए-शम्सी रखा गया जिसका मतलब है सूर्य की झील. यह नाम इल्तुतमिश की अपनी उपाधि शम्सुद्दीन के नाम पर रखा गया जिसका मतलब है आस्था का सूर्य. इसका निर्माण लगभग 1230 ईस्वी में शुरू हुआ था. झील के बीचों-बीच इल्तुतमिश ने गुंबददार छत वाला एक लाल बलुवा पत्थर का मंडप बनवाया था. इसके अंदर एक पत्थर भी रखा गया था जिस पर पैगंबर के दिव्य घोड़े बुराक के खुर के निशान हैं.

इब्न बतूता द्वारा की गई तारीफ 

चौधरी शताब्दी के प्रसिद्ध मोरक्को के यात्री इब्न बतूता ने मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान दिल्ली का दौरा किया था और इस झील के बारे में भी लिखा था. इब्न बतूता ने इसे मीठे पानी की नदी बताया था. वक्त गुजरने के साथ-साथ अलग-अलग राजवंशों ने इस झील पर अपनी छाप छोड़ी है. 

लोदी काल के दौरान इसके तट पर भव्य जहाज महल बनवाया गया था. यह महल पानीपत तैरता हुआ प्रतीत होता था, जो तीर्थ यात्री और यात्रियों के विश्राम स्थल के रूप में काम करता था. बाद में जहांगीर, शाहजहां और बहादुर शाह द्वितीय के शासनकाल के समय मुगलों ने इसमें फव्वारा, मंडप और उद्यान जोड़कर इसे एक नया रूप दिया. आज यह जगह दिल्ली के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिदृश्यों का एक अनमोल हिस्सा बन चुकी है. 2023 में स्थानीय निवासियों ने प्राइड ऑफ शम्सी नाम का एक समूह बनाया था. इस समूह ने एएसआई एनजीओ सीड्स के साथ मिलकर यहां पर सफाई अभियान चलाया.

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