दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद से वो लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से नोटों की गड्डियां बरामद होने की गई हैं. जिसके बाद केंद्र सरकार जज यशवंत वर्मा के खिलाफ अगले संसद सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने के विचार कर रही है. कहा जा रहा है कि अगर यशवंत वर्मा खुद इस्तीफा नहीं देते हैं तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा. यह प्रस्ताव जज वर्मा को पद से हटाने के लिए होगा.  

कैश कांड के बाद जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए भी कहा गया था, लेकिन कहा जा रहा है कि उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. इसके बाद 20 मार्च को उनका तबादला कर दिया गया. लेकिन उन्हें कोई काम नहीं सौंपा गया. वर्मा के खिलाफ FIR की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेज दिया गया है. अब इसका फैसला यही लेंगें. 

क्या है महाभियोग 

महाभियोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. यह प्रक्रिया आमतौर पर तब शुरू की जाती है जब किसी अधिकारी पर संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है.  महाभियोग लगाने का आखिरी फैसला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री लेते हैं. जजों के अलावा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. इसकी शुरुआत संसद के किसी भी सदन में एक प्रस्ताव लाकर की जाती है. इस प्रस्ताव पर कम से कम 100 लोकसभा सांसदों  या 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं. प्रस्ताव पास होने के बाद अंत में राष्ट्रपति की मंजूरी होना आवश्यक है. इस तरह महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होती है. 

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