इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनके दिल्ली स्थित आवास से अधजला कैश बरामद हुआ था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच समिति ने जस्टिस वर्मा पर अभियोग लगाया है. रिपोर्ट्स की मानें तो समिति की इस रिपोर्ट के बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग लाए जाने के विकल्प पर सरकार विचार कर रही है. इस प्रस्ताव को संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है. तत्कालीन सीजेआई ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की सिफारिश की है, वहीं जस्टिस्ट वर्मा का कहना है कि उनके घर में इतनी भारी मात्रा में नगदी कैसे आई. खैर चलिए जानते हैं कि महाभियोग प्रस्ताव क्या है और इसकी प्रक्रिया कैसे होती है. इस दौरान क्या संबंधित शख्स को सिर्फ पद से हटाया जाता है, या फिर उसे जेल भी हो सकती है.
क्या होता है महाभियोग
महाभियोग एक संवैधानिक प्रक्रिया होती है. इसके जरिए हाई लेवल पर बैठे शख्स जैसे कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, हाईकोर्य व सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश शामिल होते हैं. इस प्रक्रिया के जरिए इन लोगों को पदों से हटाया जा सकता है, अगर वे दुराचार यानि किसी भी तरीके के मिसबिहेव में दोषी या अक्षमता में दोषी पाए जाते हैं. संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और अनुच्छेद 218 के अनुसार किसी हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट के जज को पद से हटाने की प्रक्रिया बड़ी कठिन होती है.
कैसे चलता है महाभियोग
महाभियोग की प्रक्रिया की शुरुआत संसद के किसी एक सदन लोकसभाया राज्यसभा में की जाती है. इसमें एक प्रस्ताव लाया जाता है, जिस पर कम से कम 100 लोकसभा सांसद या 50 राज्यसभा सांसदों के साइन होने जरूरी होते हैं. इसके लिए पहले जांच समिति का गठन किया जाता है. इसमें तीन सदस्यीय समिति गठित होती है, जो कि संबंधित जज के बिहेव की जांच करती है. इसके बाद रिपोर्ट और वोटिंग की प्रक्रिया होती है. अगर रिपोर्ट में संबंधित जज को दोषी ठहराया गया तो संसद के दोनों सदनों में उस प्रस्ताव को दो तिहाई सदस्यों की उपस्थिति और मतों से पारित किया जाना चाहिए.
प्रस्ताव जब पास हो जाता है तब राष्ट्रपति की स्वीकृति जरूरी होती है. इसके लिए राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए होती है. मंजूरी के बाद न्यायाधीश को पद से हटा दिया जाता है.
क्या इसके बाद जेल भी हो सकती है?
महाभियोग की प्रक्रिया का उद्देश्य सिर्फ पद से हटाना होता है. यह सिर्फ एक प्रशासनिक और संवैधानिक कार्रवाई होती है, न कि आपराधिक कार्रवाई. लेकिन अगर जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न या फिर घूसखोरी जैसे मामले हैं तो इसके लिए अलग से आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है. तब जांच एजेंसियां जांच करती हैं और अदालत में सुनवाई होती है. अगर मामला सही पाया गया और दोष सिद्ध हो गया तो जेल भी होती है.
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