भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी एमआरएफ का आज ऑटोमोबाइल सेक्टर में भरोसमंद नाम है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं इस कंपनी की शुरुआत टायर से नहीं बल्कि बच्चों के लिए गुब्बारे बनाने से हुई थी. 1946 में शुरू हुई यह कंपनी आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय इंजीनियरिंग का प्रतीक बन गई है.
मद्रास में गुब्बारे से हुई शुरुआत
एमआरएफ की नींव के एम मॅमन मपिल्लई ने 1946 में मद्रास में रखी थी. उसे समय कंपनी का नाम मद्रास रबर फैक्ट्री था और यह सिर्फ रंग-बिरंगे टॉय बलूंस बनाती थी. मपिल्लई इन गुब्बार को खुद दुकानों और मेलों में बेचते थे, इसके अलावा वह बैग में भरकर इन्हें सड़कों पर भी बेचा करते थे.
रबर इंडस्ट्री में कदम
1950 के दशक में कंपनी ने टायर बनाने की ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले ट्रेड रबड़ का निर्माण शुरू किया. उस समय यह बाजार विदेशी कंपनियों के कब्जे में था, लेकिन एमआरएफ ने गुणवत्ता और किफायती की कीमत से मार्केट में अपनी जगह बना ली थी.
टायर निर्माण में प्रवेश
1960 में एमआरएफ ने अमेरिकी कंपनी मैनसफिल्ड टायर एंड रबर के साथ तकनीकी साझेदारी कर टायर निर्माण शुरू किया था. वहीं 1961 में एमआरएफ का पहला टायर बाजार में आया और कुछ ही सालों में कंपनी में देशभर में अपना नेटवर्क फैला लिया था.
अंतरराष्ट्रीय पहचान
1967 में एमआरएफ अमेरिका को टायर निर्यात करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी थी. इसके बाद कंपनी ने रेसिंग, क्रिकेट और अन्य खेलों में विज्ञापन के जरिए अपनी पहचान मजबूत की थी.
आज का एमआरएफ
आज एमआरएफ कार, बाइक, ट्रक, बस से लेकर लड़ाकू विमान सुखोई के लिए भी टायर बनाती है. कंपनी के टायर अपनी मजबूत ग्रिप और परफॉर्मेंस के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं. एमआरएफ के प्रोडक्शन प्लांट भारत के अलग-अलग राज्यों में फैले हैं जो हर साल लाखों टायर बनाते हैं और कई देशों में निर्यात करते हैं . यही नहीं कंपनी ने रिसर्च और डेवलपमेंट में बड़ी पैमाने पर निवेश कर नए और टिकाऊ टायर बनाने की तकनीक विकसित की है. इसके अलावा एमआरएफ ग्रुप खिलौना की कंपनी फनस्कूल, पेंट्स और मोटर स्पोर्ट्स में भी सक्रिय है. गुब्बारे बेचने से शुरू हुई है कंपनी आज भारतीय इंडस्ट्रियल जगत के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है. जिसने साबित किया है की छोटी शुरुआत भी बड़े मुकाम तक पहुंचा सकती है.
ये भी पढ़ें- क्या ट्रंप के टैरिफ अटैक पर रोक लगता सकता है कोई, अमेरिकी राष्ट्रपति के ऊल-जुलूल फैसलों पर कौन लगा सकता है रोक?