भारत साधु-संतों का देश है. यहां आपको इनसे जुड़ी कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. खासतौर से उनकी तपस्या से जुड़ी कहानियां. हालांकि, आज हम आपको जिन भिक्षुओं की तपस्या की कहानी बताने वाले हैं वो ऐसी तपस्या करते हैं कि मृत्यु के बाद भी उनके शव सदियों तक खराब नहीं होते. हालांकि, ये भिक्षु भारत के नहीं, बल्कि जापान के हैं. चलिए अब आपको इस आर्टिकल में इन भिक्षुओं से जुड़ी कई रोचक जानकारियां देते हैं. इसके अलावा ये भी बताते हैं कि आखिर अंतिम समय में ये भिक्षु जहर क्यों पीने लगते हैं.


कौन थे ये भिक्षु


हम जिन भिक्षुओं की बात कर रहे हैं जापान में उन्हें sokushinbutsu कहा जाता है. ये ऐसे भिक्षु थे जो जीवित रहते ही अपने आप को ममी को रूप में बदल लेते थे. दरअसल, इस प्रक्रिया के लिए पहले वो कई महीनों तक बिना खाना और पानी के रहते थे और जब वह खाना-पानी  के बिना नहीं रह पाते थे तब वो एक खास तरह का जहर पी लेते थे. 


एक खास तरह का भोजन लेते थे


इन भिक्षुओं पर एटलस ऑब्स्कुरा ने एक रिपोर्ट छापी थी. इसमें बताया गया था कि ये भिक्षु जब अपने अंतिम समय में पहुंचने वाले होते हैं तो तीन साल पहले से ही वो एक खास प्रकार का भोजन करना शुरू कर देते हैं. इसमें कुछ नट्स और बीज होते हैं. इसके अलावा वो कुछ और नहीं खाते. इसके अलावा अपने शरीर की चर्बी कम करने के लिए वो रोज शारीरिक व्यायाम करते हैं. वहीं जब वह अपने अंतिम समय में पहुंचते थे तो वह उरुशी पेड़ के रस से बनी चाय पीने लगते थे. इससे भिक्षुओं को उल्टी आने लगती थी और फिर उनके शरीर में पानी की कमी होने लगती थी.


ये भिक्षु ऐसा करते क्यों हैं?


दरअसल, ये भिक्षु ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर को संरक्षित करने में मदद मिल सके. हालांकि, अब ऐसा नहीं होता. लेकिन अगर आप जापान जाएं और वहां जाकर ऐसे भिक्षुओं की ममी देखना चाहें तो ये आपको माउंट युडोनो पर प्रसिद्ध दैनिची-बू मंदिर के शिन्न्योकाई शोनिन में देखने को मिल जाएगा.


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