अमेरिकी डॉलर के सामने भारतीय रुपया लगातार और तेजी से गिरता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर विपक्ष केंद्र की मोदी सरकार को लगातार घेर रहा है और सवाल पूछ रहा है. हाल ही में भारतीय रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी सबसे खराब स्थिति में है. दिसंबर 2025 तक यह कीमत लगभग 90 रुपये प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है, जो भारत सरकार और देशवासियों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. ऐसे में आइए जानते हैं कि 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से रुपये में कितनी गिरावट आई और पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के समय में इसकी कीमत कितनी थी.

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नेहरू शासनकाल में रुपये की स्थिति कैसी थी?

इतिहास पर नजर डालें तो आज़ादी के बाद नेहरू शासनकाल में भारतीय मुद्रा की तस्वीर बिल्कुल अलग थी. तब रुपये की कीमत दुनिया के कई देशों की करेंसी के मुकाबले काफी बेहतर मानी जाती थी. देश की आजादी के बाद रुपये की कीमत करीब 3.50 रुपये प्रति डॉलर थी, जो काफी मजबूत स्थिति थी. इसके बाद 1949 तक यह 4.76 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया था. 

मोदी सरकार के दौर में रुपये में कितनी गिरावट आई?

2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उस समय 1 डॉलर की कीमत करीब ₹58.5 थी, लेकिन आज रुपया इतिहास के सबसे कमजोर स्तरों में से एक पर पहुंच चुका है और डॉलर के मुकाबले 90 रुपये से ऊपर ट्रेड कर रहा है. यानी कुल मिलाकर मोदी शासन के दस वर्षों में रुपये की वैल्यू 50% से ज्यादा गिर चुकी है. सिर्फ पिछले एक साल को देखें तो सितंबर 2023 में जहां डॉलर ₹83.51 के आसपास था, वहीं सितंबर 2024 तक यह बढ़कर लगभग ₹88.74 हो गया. यानी एक साल में भी रुपये ने 6% से ज्यादा कमजोरी दिखाई.

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तुलना करें तो पहले की मनमोहन सिंह सरकार के पूरे दस साल में रुपये में लगभग 29% की गिरावट आई थी, जबकि मोदी सरकार के दौर में यह गिरावट लगभग दोगुनी रफ्तार से हुई है. कुल मिलाकर, वैश्विक आर्थिक दबाव, डॉलर की मजबूती और आयात पर निर्भरता जैसे कारणों से रुपया लगातार कमजोर होता गया है, जिससे आज उसकी कीमत आज़ादी के बाद के सबसे कमजोर स्तरों में शामिल हो चुकी है.

क्या सच में आज़ादी के समय 1 रुपया = 1 डॉलर था?

नेहरू के दौर में रुपये की कीमत को लेकर अक्सर कहा जाता है कि आज़ादी के समय 1 रुपया बराबर 1 डॉलर था, लेकिन यह सच नहीं है. 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब 1 अमेरिकी डॉलर की वास्तविक कीमत लगभग 3.30 से 4.16 के बीच थी. उस समय भारतीय रुपया सीधे डॉलर से नहीं, बल्कि ब्रिटिश पाउंड से जुड़ा हुआ था, इसलिए उसकी वैल्यू काफी स्थिर रहती थी.

नेहरू काल में रुपया इतना स्थिर क्यों था?

जवाहरलाल नेहरू के पूरे कार्यकाल (1947–1964) में रुपया लगभग स्थिर बना रहा और इस दौरान विनिमय दर में केवल करीब 2% की ही गिरावट हुई. यानी नेहरू काल में रुपये की मजबूती बरकरार थी और वह वैश्विक स्तर पर काफी स्थिर मुद्रा मानी जाती थी.

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