भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम हमले के बाद से तनाव बढ़ा हुआ है. वहीं 7 मई की रात को जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देकर दुश्मन देश के आतंकी ठिकानों को तबाह किया तब जाकर हमारे देश ने कुछ राहत की सांस ली है, लेकिन बदला अभी पूरा नहीं हुआ है. आतंक का खात्मा करना अभी भी बाकी है. वहीं 7 मई को देश के 244 जिलों में ब्लैक आउट मॉकड्रिल का रिहर्सल हुआ. इस दौरान हवाई हमले पर अलर्ट जारी करने वाले सायरन बजाए गए और लोगों ने घरों की बत्तियां बुझाकर ब्लैक आउट कर दिया.
इसको लेकर कई खबरें देखने और सुनने को मिल रही हैं. लेकिन क्या ब्लैक आउट के दौरान फाइटर जेट्स हवाई हमला कर सकते हैं. अगर ऐसा संभव है तो वो अपने टारगेट कैसे पहचानते हैं.
ब्लैकआउट की जरूरत क्यों है
ब्लैकआउट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सामान्य दृश्यता स्थिति के तहत जमीन से 5000 फीट की ऊंचाई तक दुश्मन को कोई रोशनी दिखाई न दे, ताकि दुश्मन हमला करने के लिए नागरिक क्षेत्र को न देख सके. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दुश्मन के विमानों से खुद को और अपने शहर को सुरक्षित कैसे बनाया जाए, इसीलिए पूरी तरह से अंधेरा किया जाता है. इस दौरान कोई भी चमकदार लाइट बाहर चमकती हुई नहीं दिखाई देनी चाहिए.
ब्लैकआउट के दौरान फाइटर जेट टारगेट पर कैसे हमला करते हैं
20वीं सदी में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्लैकआउट की रणनीति चर्चा में थी. इसक उद्देश्य दुश्मन के हवाई हमले को सुरक्षित बनाना था. जिससे दुश्मन देश के पायलट को टारगेट खोजने में परेशानी हो. पहले के जमाने में तो यह रणनीति काम आती थी, लेकिन आज के दौर में जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, तब ऐसी परिस्थिति शायद लागू न हो पाए. क्योंकि आधुनिक विमानों में लगे जीपीएस सिस्टम इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम पायलटों को कम रोशनी और हिंट के जरिए भी उड़ान भरने में मदद करते हैं.
अब ब्लैक आउट के मोहताज नहीं हैं फाइटर जेट्स
आज के वक्त में अगर जीपीएस सिस्टम काम न करे तो INS यानि इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम काम आते हैं. इसके अलावा इन्फ्रारेड कैमरे भी फिट होते हैं, जो कि हीट सिग्नल्स का पता लगाते हैं. एडवांस फाइटर एयक्राफ्ट प्रो-ओरिएंटेड कॉर्डिनेट्स के साथ सटीक निशाना लगाकर हथियार छोड़ते हैं. ये हथियार पहले से निर्धारित स्थानों पर हमला करने को लेकर लोड होकर आते हैं. यही वजह है कि आज के समय में ब्लैकआउट की भूमिका काफी हद तक कम हो चुकी है. हालांकि फिर भी यह ऑप्टिकल और इन्फ्रारेड सर्विलांस में बाधा उत्पन्न करके नेविगेशन को कमजोर करते हैं और विजिबिलटी को कम करके अपना उद्देश्य पूरा करता है.
इन चीजों का इस्तेमाल करके बनाते हैं निशाना
आज के समय में फाइटर पायलेट सटीक तरीके से अपने टारगेट को निशाना बनाने के लिए सेंसर, जीपीएस बेस टारगेटिंग, थर्मल इमेजिंग, रडार और खुफिया जानकारी के जनकारी रपर निर्भर होते हैं. ब्लैक आउट के जरिए अब वह सुरक्षा नहीं की जा सकती है, जो कि पहले की जाती थी. लेकिन अगर पूरी तरह से अंधेरा कर दिया जाए, तब इसका लाभ मिल सकता है.
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