बात आर्मी की हो, नौ सेना की या वायुसेना की, जब देश की सेवा करने के मामले में सर्वोच्च सम्मान देने का जिक्र हो तो सबसे पहले परमवीर चक्र का नाम लिया जाता है. यह भारतीय रक्षा सेनाओं को मिलने वाला सर्वोच्च शौर्य सम्मान है. यह पदक जल, थल और वायु में दुश्मनों के सामने दिखाई गई विशिष्ट वीरता, आत्म बलिदान के साहसिक और महत्वपूर्ण कार्यों के लिए दिया जाता है. क्या आपको मालूम है कि यह वीरता पदक किसने डिजाइन किया था और सबसे पहला परमवीर चक्र देश के किस बहादुर को दिया गया था? अगर नहीं तो आज इन दोनों सवालों के जवाब जान लीजिए.
क्या है परमवीर चक्र की अहमियत?
भारतीय सेनाओं के लिए उच्चतम शौर्य सम्मान परमवीर चक्र (PVC) अदम्य साहस, शौर्य और शूरवीरता के लिए प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च सैन्य सम्मान है. यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जाता है. परम का अर्थ है सर्वोकृष्ट और वीर का अर्थ है साहसी. वहीं, चक्र का अर्थ है पहिया. ऐसे में परमवीर चक्र का मतलब होता है 'वीरों' में सर्वोत्तम को दिया जाने वाला चक्र या अलंकार. भारत में परमवीर चक्र यूनाइटेड किंगडम (UK) के विक्टोरिया क्रॉस और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका (USA) के पदक ऑफ ऑनर के बराबर है. भारत का यह सर्वोच्च सैन्य सम्मान अब तक 21 शूरवीरों को दिया गया है, जिनमें 14 मरणोपरांत हैं.
इस विदेशी महिला ने डिजाइन किया था परमवीर चक्र
परमवीर चक्र को डिजाइन करने वाली महिला सावित्री बाई खानोलकर थीं. कला-कौशल और भारतीय संस्कृति के बारे में गहरी रुचि रखने के कारण उन्हें पदकों का डिजाइन बनाने के लिए चुना गया था. परमवीर चक्र के अलावा उन्होंने युद्ध और शांति दोनों के लिए दिए जाने वाले प्रमुख पदक भी डिजाइन किए थे. इनमें अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र शामिल हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सावित्री बाई खानोलकर स्विट्जरलैंड की रहने वाली थीं. उनका असली नाम ईवावोन लिंडा मेदे दे मारोस था. वह कैडेट विक्रम राम जी खानोलकर से उस वक्त मिलीं, जब वह सैंडहर्स्ट यूनाइटेड किंगडम की रॉयल मिलिट्री अकैडमी की छुट्टियों के दौरान स्विटजरलैंड गए थे. दोनों को एक-दूसरे से मुहब्बत हो गई और उन्होंने शादी कर ली. इसके बाद ईवावोन ने अपना नाम सावित्री बाई खानोलकर रख लिया. उनका निधन 26 नवंबर 1990 को हुआ.
उनके ही दामाद को मिला था पहला परमवीर चक्र
अहम बात यह है कि सावित्री बाई खानोलकर की बेटी कुमुदिनी शर्मा के देवर मेजर सोमनाथ शर्मा थे. वह 1947 के दौरान बडगाम की लड़ाई के बाद शहीद हो गए थे. उन्हें मरणोपरांत भारत के पहले परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. दरअसल, 3 नवंबर 1947 को बडगाम में जंग के दौरान गोला-बारूद खत्म होने वाला था. इसके बाद ब्रिगेड मुख्यालय से पीछे हटने का आदेश आया था, लेकिन मेजर सोमनाथ ने पीछे हटने से इनकार कर दिया.
मेजर शर्मा ने दिखाया था अदम्य साहस
बता दें कि मेजर शर्मा अपनी कंपनी के साथ श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा के लिए तैनात थे. उस दौरान पाकिस्तानी कबायलियों और सैनिकों ने भारी संख्या में उन पर हमला बोला था. इस जंग में मेजर शर्मा गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन वह अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करते रहे. उन्होंने दुश्मन को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी. अपने आखिरी संदेश में उन्होंने कहा था कि दुश्मन हमसे कई गुना है, लेकिन हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे. उनकी बहादुरी की वजह से भारत उस वक्त श्रीनगर हवाई अड्डे को बचाने में कामयाब रहा था.
ये भी पढ़ें: कुत्तों के कारण भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे जूनागढ़ के राजा, मामला जानकर उड़ जाएंगे होश