Independence Day 2025: भारत आज अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आज से 78 साल पहले जब देश आजाद हुआ था और भारत-पाकिस्तान दो हिस्सों में देश बांटा जाना था. उस वक्त भारत और पाकिस्तान की सीमा रेखा खींचने का काम ऐसे शख्स को दिया था, जिसने पहले कभी भारत की जमीन पर कदम तक नहीं रखा था, उस शख्स का नाम था सर सिरिल रेडक्लिफ.

रेडक्लिफ ने ही कभी नहीं देखा था भारत

ब्रिटेन के जाने-माने वकील सर सिरिल रेडक्लिफ को बाउंड्री कमीशन का मुखिया बनाया गया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सिर्फ 5 हफ्तों का समय दिया था ताकि वे 17 करोड़ की आबादी वाले इस उपमहाद्वीप का नक्शा तैयार कर सकें. रेडक्लिफ को काम दिया था कि वे पंजाब और बंगाल को हिंदू और मुस्लिम बहुल इलाकों के आधार पर बांटें, ताकि एक ओर भारत और दूसरी ओर नया देश पाकिस्तान बन सके. लेकिन समस्या यह थी कि रेडक्लिफ को न तो भारत के भूगोल की गहरी समझ थी, न यहां की राजनीति का अनुभव, और न ही सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का ज्ञान.

बड़ा पेंचीदा काम था सरहद बनाना

रेडक्लिफ को जो भी जानकारी मिली थी, वह ज्यादातर पुराने आंकड़ों, जनगणना के रिकॉर्ड और ब्रिटिश अधिकारियों की रिपोर्ट पर आधारित थी. इतना ही नहीं, रेडक्लिफ को ऐसी स्थिति का भी सामना करना पड़ा जहां धर्म के आधार पर बंटवारे की कोशिश की गई, लेकिन हकीकत में गांव, कस्बे और जिले सब मिली-जुली आबादी वाले थे. कहीं हिंदू बहुल गांव के बीच मुस्लिम गांव था, तो कहीं मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदू बस्तियां बसी थीं. ऐसे में सरहद खींचना एक बड़ा पेचीदा और संवेदनशील काम बन गया था.

जब बनी सरहद तो भड़क उठे दंगे

17 अगस्त 1947 को रेडक्लिफ लाइन का एलान किया गया. यह नक्शा आजादी मिलने के दो दिन बाद ही सामने आया, ताकि तत्काल होने वाली हिंसा और अशांति को रोका जा सके. लेकिन नतीजा इसके उलट हुआ. रेडक्लिफ के द्वारा खींची गई इस सीमा रेखा ने लाखों लोगों को एक झटके में दूसरे देश का नागरिक बना दिया था. पंजाब और बंगाल में भीषण दंगे भड़क उठे थे. ट्रेनें लाशों से भरकर आने लगीं, गांव जलने लगे और करीब 10 से 15 लाख लोग इस हिंसा में मारे गए.

सदमे में थे रेडक्लिफ

रेडक्लिफ खुद इन घटनाओं से गहरे सदमे में थे. उन्होंने भारत छोड़ने से पहले अपने सारे दस्तावेज जला दिए, ताकि उनके फैसलों को लेकर कोई विवाद न हो. बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि अगर उन्हें इस काम की गंभीरता और इसके नतीजों का अंदाजा होता, तो शायद वे इसे करने के लिए सहमत ही नहीं होते.

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