First Banknote: आज के जमाने में हम जब भी पैसे की बात करते हैं तो कागज की करेंसी काफी ज्यादा आम लगती है. लेकिन मेटल के सिक्कों की जगह कागज का इस्तेमाल करने का विचार कभी क्रांतिकारी था. हैरानी की बात है कि दुनिया का पहला बैंक नोट यूरोप और मिडिल ईस्ट में नहीं बना था, बल्कि इसकी शुरुआत चीन में हुई थी वह भी हजारों साल पहले. आइए जानते हैं कैसे हुई थी इसकी शुरुआत.
प्राचीन चीन में फ्लाइंग मनी
कागज के पैसे का सबसे शुरुआती रूप सातवीं सदी में चीन के तांग राजवंश के दौरान सामने आया. उस समय व्यापार तेजी से बढ़ रहा था लेकिन व्यापारियों को एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा था. दरअसल तांबे के सिक्के काफी ज्यादा भारी थे और उन्हें लंबी दूरी तक ले जाना खतरनाक था. इस समस्या को हल करने के लिए व्यापारियों ने कागज की रसीदों और प्रॉमिसरी नोटों का इस्तेमाल करना शुरू किया. इन्हें फ्लाइंग मनी कहा जाता था. ये दस्तावेज जमा किए गए सिक्कों को दिखाते थे और इन्हें बाद में भुनाया जा सकता था.
इसे फ्लाइंग मनी क्यों कहा जाता था?
दरअसल यह नोट हल्के कागज के बने होते थे जो भारी मेटल के सिक्कों की तरह नहीं थे. इससे भी जरूरी बात यह है कि इसने पैसों को बिना फिजिकल ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में उड़ने की अनुमति दी.
सरकार ने किया बैंक नोट का समर्थन
असली मोड़ 10वीं-11वीं सदी में सोंग राजवंश के दौरान आया. 1023 ईस्वी में चीनी सरकार ने आधिकारिक तौर पर सिचुआन प्रांत में कागज की करेंसी जारी करने पर कंट्रोल कर लिया. इन राज्य समर्थित नोटों को जिआओजी कहा जाता था. इससे वे दुनिया के पहले आधिकारिक बैंकनोट बन गए.
चीन ने कागज की करेंसी का आविष्कार क्यों किया?
कई वजह ने चीन को कागज के पैसे की तरफ धकेला. तांबे के सिक्कों की कमी थी, बढ़ते व्यापार के लिए तेज लेन-देन की भी जरूरत थी और मेटल करेंसी को ले जाना मुश्किल था. कागज के पैसों ने इन सभी समस्याओं का हल किया.
कागज के पैसे बाकी दुनिया तक कैसे पहुंचे?
कागज की करेंसी के विचार ने विदेशी आगंतुकों को चौंका दिया. 13वीं सदी में इटैलियन खोजकर्ता मार्को पोलो ने अपनी यात्रा में लेखों में चीन की कागजी मुद्रा प्रणाली के बारे में जिक्र किया. इससे यूरोपियन लोगों को इस कॉन्सेप्ट के बारे में पता लगा.
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