Blood Money: ब्लड मनी जिसे इस्लामी कानून में 'दियाह' भी कहा जाता है, हत्या या फिर शारीरिक क्षति के मामलों में अपराधी या फिर उसके परिवार द्वारा पीड़ित के परिवार को दिया जाने वाला एक आर्थिक मुआवजा है. यह प्रथा इस्लामी न्याय शास्त्र में काफी गहराई तक समाई हुई है और कुरान में भी इसका उल्लेख है. अपने धार्मिक आधार के बावजूद भी ब्लड मनी का मुद्दा काफी विवादों से भरा है और कई मुस्लिम देशों में इसे लागू नहीं किया जाता. इसकी वजह समझने के लिए आइए जानते हैं ब्लड मनी के बारे में पूरी जानकारी.
इस्लामी कानून में ब्लड मनी
इस्लामी परंपरा में ब्लड मनी को बदले की भावना को खत्म करने के तौर पर दिखाया गया है. ब्लड मनी के पीछे का मूल विचार पीड़ित के परिवार को बदला लेने के बजाय सुलह और माफी का रास्ता दिखाना है. जब भी कोई व्यक्ति मारा जाता है या फिर घायल होता है तो पीड़ित का परिवार पहले से तय एक आर्थिक मुआवजा स्वीकार करना चुन सकता है. ऐसे मामलों में अगर परिवार अपनी इच्छा से अपराधी को माफ कर दे तो उसे कड़ी सजा, यहां तक की मौत की सजा से भी बचाया जा सकता है. इसमें मुआवजे की राशि देश के कानूनी ढांचे, शरिया सिद्धांत या फिर दोनों परिवारों के बीच बातचीत के आधार पर अलग-अलग हो सकती है.
मुस्लिम देश जहां पर ब्लड मनी लागू नहीं
- तुर्की
- इंडोनेशिया
- बांग्लादेश
- ट्यूनीशिया
ब्लड मनी का विरोध क्यों
वैसे तो कई मुस्लिम देश ब्लड मनी को कानूनी मान्यता देते हैं लेकिन इसके बावजूद भी मानवाधिकार कार्यकर्ता और वैश्विक संगठन की बढ़ती संख्या इसके खिलाफ तर्क दे रही है. इसकी सबसे बड़ी आलोचना इस चीज को लेकर होती है कि एक अमीर अपराधी कठोर सजा से बचने के लिए अपने पैसे को ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकता है. वहीं गरीब के पास यह रास्ता नहीं होता जिस वजह से न्याय में असंतुलन पैदा होता है.
इसी के साथ एक और गंभीर चिंता है. यह चिंता है कमजोर समूहों पर पड़ने वाला दबाव. जिन भी परिवारों के पास संसाधन नहीं है उन्हें ब्लड मनी स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इस चीज का खतरा तब और बढ़ जाता है जब आरोपी शक्तिशाली हो. इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि महिलाओं या फिर गैर मुसलमानों के लिए ब्लड मनी की राशि मुस्लिम पुरुषों की तुलना में कम आंकी जाती है. इससे भेदभाव और लैंगिक असामान्यता के सवाल उठते हैं.
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