Religious Studies: हिंदू धर्म में काफी छोटे बच्चों को धार्मिक अनुष्ठान करते हुए या फिर उन्हें पंडित जी से संबोधित करते हुए देखना काफी ज्यादा आम है. यह अक्सर दूसरे धर्म के लोगों को काफी ज्यादा हैरान करता है. लेकिन इसी बीच सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा ही इस्लाम में भी होता है. आइए जानते हैं क्या मुसलमानों में भी छोटे बच्चे मौलवी या इमाम की उपाधि पा सकते हैं.
हिंदू धर्म में धार्मिक शिक्षा
पारंपरिक हिंदू संस्कृति में एक बच्चा गुरुकुल सिस्टम के जरिए कम उम्र से ही पंडित बनने के लिए पढ़ाई शुरू कर सकता है. यहां बच्चे पढ़े-लिखे गुरुओं के साथ रहते हैं और पढ़ते हैं. इसी के साथ वे खुद को संस्कृत, वेदों, उपनिषदों, मंत्रों और पूजा पाठ के प्रक्रिया में डुबो देते हैं. सालों तक याद करने, पाठ करने और अभ्यास करने से वे बड़े होने से पहले ही काबिल अनुष्ठान करने वाले पंडित बन जाते हैं.
खास बात यह है कि पंडित शब्द का सीधा मतलब विद्वान होता है. आपको बता दें कि शास्त्रों में असाधारण ज्ञान या फिर महारत दिखाने वाले बच्चों को उम्र की परवाह किए बिना सम्मान के तौर पर यह उपाधि दी जा सकती है. इस वजह से हिंदू पुरोहिती बड़े होने से नहीं बल्कि अध्ययन, सीखने और भारत की गहराई से तय होती है.
कैसी है इस्लाम की संरचना?
इस्लाम बच्चों को मौलवी, इमाम या फिर धार्मिक अधिकारी के रूप में काम करने की इजाजत नहीं देता है. इन पदों के लिए मेच्योरिटी, स्कॉलरशिप और स्थापित इस्लामी संस्थाओं से एक औपचारिक सर्टिफिकेट की जरूरत होती है. एक मौलवी, इमाम या फिर शेख को मदरसों में सालों तक पढ़ाई करनी पड़ती है. इसमें अरबी, कुरान की व्याख्या, हदीस विज्ञान, इस्लामी कानून, धर्मशास्त्र और नैतिकता शामिल है.
इस्लाम में बच्चों को कुरान पढ़ने, नमाज पढ़ना सीखने और अपने धर्म को समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआती कदम है. एक बच्चा भले ही कितना ही बुद्धिमान क्यों ना हो जब तक कि वह बड़ा नहीं हो जाता और उसे औपचारिक मान्यता नहीं मिल जाती तब तक वह नमाज नहीं पढ़ा सकता, मार्गदर्शन भी नहीं दे सकता और ना ही धार्मिक नेता के रूप में सेवा कर सकता है. वहीं हिंदू धर्म में पंडित शब्द विद्वानों के लिए इस्तेमाल होता है और इसी वजह से यहां बच्चे की उम्र की परवाह किए बिना ज्ञान के आधार पर उसे यह उपाधि दे दी जाती है.
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