अफ्रीका के पूर्वी छोर पर बसे सोमालिया का नाम सुनते ही दिमाग में समुद्री डाकुओं, अस्थिर राजनीति और कमजोर अर्थव्यवस्था की तस्वीर उभर आती है, लेकिन इसी देश की करेंसी जब भारतीय रुपये से तुलना में उतरती है, तो आंकड़े चौंका देने वाले हो जाते हैं. वहां कमाए 100000 शिलिंग भारत पहुंचते-पहुंचते इतने हल्के हो जाते हैं कि लोग पहली बार सुनकर यकीन ही नहीं कर पाते हैं. आखिर किस वजह से सोमालिया की करेंसी इतनी कमजोर है और भारत में इसकी असली कीमत कितनी बैठती है, यही इस रिपोर्ट का असली ट्विस्ट है.

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सोमाली शिलिंग

सोमालिया की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे अस्थिर अर्थव्यवस्थाओं में गिनी जाती है. इसी वजह से यहां की करेंसी सोमाली शिलिंग का हाल यह है कि नोटों की गिनती तक मुश्किल हो जाती है. कई बाजारों में लोग नोटों को वजन के आधार पर खरीदते-बेचते हैं, क्योंकि उनकी कीमत इतनी कम है कि गांठें बांधकर रखना ही आसान पड़ता है. यही वजह है कि 100000 सोमाली शिलिंग सुनने में बड़ी रकम लगती है, लेकिन भारत की मजबूत रुपये प्रणाली के सामने यह राशि पलक झपकते ही अपना वजन खो देती है.

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100000 सोमाली शिलिंग भारत में कितने?

सोमाली शिलिंग की कीमत भारत के मुकाबले इतनी कमजोर है कि पूरा हिसाब एक साधारण जोड़-घटाव में सिमट जाता है. मौजूदा एक्सचेंज वैल्यू के हिसाब से भारतीय 100 रुपये के बदले करीब 12000 सोमाली शिलिंग मिलते हैं. यही आधार पकड़ें तो 100000 सोमाली शिलिंग भारत पहुंचते ही लगभग 8 से 9 रुपये के बराबर रह जाते हैं. यानी सोमालिया में सुनने में लाख का आंकड़ा भारत में सिर्फ एक चॉकलेट बार की कीमत भी नहीं छू पाता है. यहां यही फर्क बताता है कि करेंसी की ताकत का असली मूल्य उसके नोटों की संख्या में नहीं, उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में छिपा होता है.

सोमालिया की करेंसी इतनी कमजोर क्यों?

इस देश की आर्थिक कमजोरी की जड़ें इसकी राजनीतिक अस्थिरता में छिपी हैं. दशकों से चले आ रहे गृह संघर्ष, बाहरी दखल और आर्थिक ढांचे की कमी ने इसकी करेंसी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहद हल्का बना दिया है. महंगाई इतनी अधिक है कि आम लोगों के लिए बड़े नोटों का होना भी किसी लाभ का सौदा नहीं बनता है. यही वजह है कि बैंकिंग सिस्टम कमजोर है और लोग आज भी नकदी पर ही निर्भर रहते हैं, वह भी ढेरों नोटों के रूप में जिन्हें संभालना मुश्किल है.

भारत में रुपये की मजबूती का असर कैसी तुलना दिखाता है?

भारतीय रुपये की वैश्विक स्थिति अपेक्षाकृत स्थिर है. यही वजह है कि सोमाली शिलिंग जैसी करेंसी भारत में आते ही अपनी चमक खो देती है, जबकि भारत में महंगाई नियंत्रित है, आर्थिक ढांचा मजबूत है और रुपये का मूल्य लगातार एक संतुलन में रहता है. दोनों देशों की आर्थिक दूरी का यही फर्क 100000 सोमाली शिलिंग को भारत में एक बेहद मामूली रकम बना देता है.

सोमालिया में ‘लाख’ कमाना बनाम भारत में ‘लाख’ कमाना

सोमालिया में लाख शिलिंग कमाना इतनी बड़ी उपलब्धि नहीं माना जाता, जितना भारत में लाख रुपये कमाने का सपना होता है. यहां कमाई की वास्तविक ताकत उस देश की आर्थिक संरचना पर निर्भर होती है, जहां यह खर्च हो रही है. यही वजह है कि सोमालिया का लाख भारत में पहुंचते-पहुंचते कुछ रुपये ही बन जाता है और इस तुलना से दोनों देशों की आर्थिक स्वास्थ्य का अंतर आसानी से समझ आता है.

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