भारत पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़े विवाद के दौरान हमें रडार के बारे में अक्सर सुनने को मिला था कि भारतीय रडार ने पाकिस्तानी मिसाइल, ड्रोन को डिटेक्ट कर लिया और उसके बाद उसे मार कर गिरा दिया गया. सिर्फ भारत पाकिस्तान तनाव ही नहीं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध हो या फिर ईरान और इजरायल के बीच में चल रही जंग हो . आधुनिक युग के वॉरफेयर में आपको रडार का जिक्र जरूर मिलता है. चलिए जानते हैं कि आखिर रडार काम कैसे करता है और इससे कितनी देर में दुश्मन का विमान खत्म हो जाता है?
कैसे काम करता है रडार?
रडार का फुलफॉर्म Radio Detection and Ranging होता है. यह रेडियो तरंगों की मदद से किसी वस्तु की स्थिति, गति और ऊंचाई का पता लगाता है. एक बार जैसे ही दुश्मन का कोई प्लेन रडार की रेंज में आ जाता है, उसके बाद उसकी लोकेशन, स्पीड और दिशा तुरन्त पकड़ में आ जाती है. इसे 5 से लेकर 10 सेकेंड का समय लगता है यह पहचानने में कि वह प्लेन अपना है या फिर दुश्मन का. अगर वह दुश्मन प्लेन निकले तो एयर डिफेंस सिस्टम को फायर का सिग्नल दिया जाता है, जिसमें मिसाइल को टारगेट की रेंज को ध्यान में रखकर दागा जाता है. उदाहरण के लिए, मिसाइल अगर 50-100 किमी दूर से दागी गई है तो 20-40 सेकंड के अंदर प्लेन टारगेट हो सकता है. दूरी के हिसाब से टागरेट को खत्म करने में समय लग सकता है.
सभी प्लेन को रडार पकड़ लेता है?
इसका सीधा और सरल जवाब है नहीं. रडार सभी विमानों को नहीं पकड़ सकता है. इसके पीछे कारण यह है कि, आधुनिक समय में प्लेन को स्टेल्थ तकनीक से लैस किया जा रहा है, जैसे अमेरिका का F-35, इन्हें इस तरह डिजाइन किया जाता है कि रडार इनको पकड़ न सके और ये अपना काम आसानी से कर सकें. कुछ प्लेन बहुत कम ऊंचाई पर उड़कर रडार से बच निकलते हैं, जिसे Nap-of-the-Earth flying कहते हैं.
दुनिया का सबसे तगड़ा रडार सिस्टम कौन सा?
अगर दुनिया के सबसे तगड़े रडार सिस्टम की बात करें तो यह Lockheed Martin SPY‑7 है. इसे अमेरिका की प्रमुख डिफेंस कंपनी Lockheed Martin ने विकसित किया है. यह बैलिस्टिक मिसाइल, फाइटर जेट, ड्रोन, हाइपरसोनिक हथियार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तक को ट्रैक करने की क्षमता रखता है. इसकी खासियत यह है कि यह हर दिशा से आने वाले खतरे को बिना घूमे ट्रैक करता है और एक सेकंड से भी कम में टारगेट की पहचान कर लेता है.
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