देश के कई राज्यों में मानसून दस्तक दे चुका है और यह तेजी से उत्तर भारत की तरफ बढ़ रहा है. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस बार कई राज्यों में मानसून समय से पहले पहुंच सकता है, जिस कारण जमकर बारिश होगी. जैसे-जैसे बारिश के दिन नजदीक आ रहे हैं दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में रहने वालों की दिलों की धड़कन भी तेज होती जा रही है.
दरअसल, दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद समेत कई शहरों को जरा सी बारिश में तालाब बनते देर नहीं लगता है. इसका सबसे बड़ा कारण है यहां का खराब ड्रेनेज सिस्टम. ड्रेनेज के मामले में गुरुग्राम का हाल तो सबसे बुरा है और यहां बारिश शुरू होते ही सड़कें तालाब नजर आती हैं. आइए जानते हैं कि ड्रेनेज सिस्टम के अलावा वह एक कौन सी चीज है, जिस कारण बारिश के दौरान कई शहर तालाब बन जाते हैं? यह चीज कितना नुकसान पहुंचाती है? चलिए जानते हैं...
प्लास्टिक है जलभराव का सबसे बड़ा कारण
आज के समय में प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बन चुका है. यही कारण है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने पर जोर दे रहे हैं और इसे इस्तेमाल से बाहर करने की अपील कर रहे हैं. इसके बावजूद प्लास्टिक पर निर्भरता इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि सुबह से शाम तक लेकर यह हमारे इर्दगिर्द ही रहती है. प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल कई तरह के प्रदूषण का भी कारण बन रही है. इससे न केवल इंसानी जीवन को खतरा है, बल्कि प्लास्टिक के कारण जानवर और जीवन जंतु भी कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों में जलभराव भी एक समस्या है. दरअसल, प्लास्टिक के टुकड़े, पॉलीथीन अक्सर नालियों या बड़े नालों में जाकर फंस जाती हैं, जिससे जल निकासी बाधित होती है. यह समस्या बारिश के समय बड़ा रूप ले लेती है और ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह ब्लॉक हो जाती है, जिससे जलभराव होता है, जिन शहरों में पहले से ड्रेनेज सिस्टम खराब है, जहां प्लास्टिक के कारण और भी ज्यादा बुरा हाल होता है.
होने लगी है प्लास्टिक की बारिश!
दुनिया के कई ऐसे शहर हैं, जहां प्लास्टिक की बारिश तक हो रही है. यह वैज्ञानिकों की चिंता का बड़ा कारण है. कई ऐसी स्टडी हुई हैं, जिसमें बारिश की बूंदों में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटी नालियों, नदियों से होते हुए प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र तक पहुंच जाते हैं, जिसके बाद यह ईको सिस्टम का हिस्सा हो जाते हैं. बारिश होने पर प्लास्टिक के यही टुकड़े माइक्रोप्लास्टिक के रूप में बरसते हैं, जो हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं.
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