Body Shaming law in India : हमारे समाज में अक्सर लोग बिना सोचे-समझे दूसरों की शारीरिक बनावट पर टिप्पणी कर देते हैं. कोई मोटा है, कोई पतला, किसी का रंग काला है, यह सब देखकर लोग मजाक बना देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसी बातें कहना न सिर्फ़ नैतिक रूप से गलत है, बल्कि कानूनी रूप से भी अपराध है? आइए जानते हैं कि भारतीय कानून इस पर क्या कहता है और ऐसी हरकतों पर क्या सजा मिल सकती है. 

क्यों है यह गलत?

सबसे पहले इंसानियत के नज़रिए से सोचें तो मोटा, पतला या काला कहना किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकता है. इससे लोगों का आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और कई बार यह डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों की वजह बन सकता है. खासकर बच्चों और किशोरों पर इसका गहरा असर पड़ता है.

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भारतीय कानून क्या कहता है?

भारत में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। यानी कोई भी आपकी गरिमा को ठेस नहीं पहुंचा सकता। धारा 499, अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से आपके बारे में अपमानजनक टिप्पणी करता है, जिससे आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है, तो यह मानहानि केस में आता है। इसमें दो साल तक की जेल या जुर्माना लग सकता है. धारा 500, इसके तहत आरोपी को सीधे सजा दी जाती है, अधिकतम दो साल की कैद, जुर्माना या फिर दोनों सजा दी जाती है. 

धारा 504, अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर उकसाने के इरादे से अपमानित करता है, जिससे सामने वाला गुस्से में आकर हिंसक हो सकता है, तो इसमें भी एक साल तक की सजा. जुर्माना या दोनों दी जा सकती है.

समाज की जिम्मेदारी क्या है?

कानून अपनी जगह है, लेकिन समाज में बदलाव हमारी सोच से आता है. दूसरों की शारीरिक बनावट का मज़ाक उड़ाने की जगह हमें यह समझना चाहिए कि, हर इंसान की अपनी खूबसूरती होती है. सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, स्कूल-कॉलेज में बुलिंग और ऑफिस में बॉडी-शेमिंग, यह सब हमारी इंसानियत को कमजोर बनाते हैं.

आपके साथ हो तो क्या करना चाहिए?

अगर आपके साथ ऐसा कुछ हो, तो सबसे पहले अपने करीबी लोगों को बताएं और अगर मामला गंभीर हो, तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं. कई बार एक छोटी सी शिकायत से बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है. साथ ही, जब भी आप अपने आसपास ऐसी कोई घटना देखें तो चुप न रहें. 

मोटा-पतला या काला कहना सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि चोट लगने वाले शब्द होते हैं. हमें समझना होगा कि कुछ गलत शब्दों का असर गहरा होता है. अगर हम एक संवेदनशील समाज बनाना चाहते हैं, तो शुरुआत अपने घर से करनी होगी. तभी जाकर समाज में छोटे-छोटे बदलाव किए जा सकते हैं.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.