अफगानिस्तान को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि भारत ने उसे कितना कर्ज दिया है और क्या उसकी वसूली संभव है, लेकिन सबसे अहम तथ्य यही है कि भारत ने अफगानिस्तान को कर्ज नहीं, बल्कि सहायता (Grant Assistance) दी है, यानी भारत सरकार ने जो रकम खर्च की, वह ऋण नहीं थी और उसकी वापसी की कोई कानूनी शर्त नहीं रखी गई है. आइए जान लेते हैं कि आखिर अफगानिस्तान पर भारत का कितना कर्जा है.

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भारत ने अफगानिस्तान को कितनी आर्थिक मदद दी?

भारत ने साल 2001 के बाद से अफगानिस्तान को करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 25 हजार करोड़ रुपये) की सहायता दी है. यह मदद पूरी तरह अनुदान के रूप में दी गई, न कि लोन के तौर पर. इसमें बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क और प्रशासनिक भवनों के निर्माण पर खर्च किया गया है. 

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कर्ज नहीं, विकास परियोजनाओं में निवेश

भारत की मदद का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष विकास परियोजनाओं में गया है. इनमें काबुल में अफगान संसद भवन का निर्माण, सलमा डैम (जिसे अफगान-भारत मैत्री बांध कहा जाता है), सड़क परियोजनाएं, अस्पताल, स्कूल, छात्रवृत्तियां और मानवीय सहायता शामिल हैं. इन परियोजनाओं का मकसद अफगानिस्तान की संस्थागत क्षमता बढ़ाना था, न कि आर्थिक लाभ कमाना. 

क्या भारत को यह पैसा वापस मिलेगा?

चूंकि यह सहायता कर्ज नहीं थी, इसलिए इसकी कोई वसूली नहीं होती है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत ने अफगानिस्तान से कभी भी इस राशि की वापसी की मांग नहीं की. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इसे सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी कहा जाता है, जहां देश सीधे लाभ की बजाय क्षेत्रीय स्थिरता और भरोसे को प्राथमिकता देते हैं. 

तालिबान के आने के बाद स्थिति क्या बदली?

2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने नई विकास परियोजनाएं रोक दीं, लेकिन पहले से दी गई सहायता को कर्ज में नहीं बदला गया. भारत ने अब तक अफगान जनता के लिए मानवीय मदद जैसे गेहूं, दवाइयां और राहत सामग्री भेजी है, वह भी बिना किसी वित्तीय शर्त के. 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की नीति

भारत की अफगान नीति हमेशा लोगों-केंद्रित रही है. यही कारण है कि भारत ने कभी भी अफगानिस्तान को आईएमएफ या वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों की तरह ऋण नहीं दिया है. इसलिए कर्ज वसूली का सवाल ही पैदा नहीं होता.

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