पिछले कुछ समय से भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है. डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत अपने अब तक के सबसे निचले स्तर के आसपास पहुंच गई है. रुपया मजबूत या कमजोर है, यह हमेशा डॉलर की कीमत से पता चलता है.अगर 1 डॉलर की कीमत कम है तो रुपया मजबूत होगा और अगर 1 डॉलर की कीमत ज्यादा है तो रुपया कमजोर होगा. हाल ही में डॉलर की कीमत 90 रुपये के पार तक पहुंच गई यानी रुपया कमजोर हुआ. ऐसे में लोग सवाल पूछ रहे हैं, रुपया इतना क्यों गिर रहा है, क्या ये गिरावट पहले भी होती थी और मोदी सरकार में रुपया ज्यादा टूटा या मनमोहन सरकार के समय, तो आइए जानते हैं कि मोदी राज में रुपया कितना टूटा और ये मनमोहन काल के मुकाबले कम या ज्यादा है?
मोदी राज में रुपया कितना टूटा?
2014 में मोदी सरकार की शुरुआत में 1 डॉलर पर 58.58 रुपये था. अब डॉलर लगभग 90 रुपये के पार है यानी मोदी सरकार में रुपये की गिरावट 52 प्रतिशत से ज्यादा हो चुकी है. पिछले एक साल में भी रुपये ने डॉलर के मुकाबले काफी कमजोरी दिखाई है. सितंबर 2023 में जहां 1 डॉलर की कीमत 83.51 रुपये थी, वहीं सितंबर 2024 में यह बढ़कर 88.74 रुपये हो गई यानी सिर्फ एक साल में रुपये की वैल्यू 6 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुकी है.
यह मनमोहन काल के मुकाबले कम या ज्यादा?
मनमोहन सिंह ने 2004 में जब सरकार संभाली थी, उस समय डॉलर 45.45 रुपये का था. 2014 में उनके कार्यकाल के अंत तक डॉलर 58.58 रुपये तक पहुंच गया यानी पूरे 10 सालों में रुपये की कीमत लगभग 29 प्रतिशत घटी. इसके मुकाबले मोदी सरकार में रुपये की गिरावट कहीं ज्यादा तेज रही. 2014 में मोदी सरकार की शुरुआत के समय डॉलर 58.58 रुपये का था, जो अब बढ़कर 90 रुपये के पार तक पहुंच चुका है. इसका मतलब यह हुआ कि पिछले दस वर्षों में रुपया 52 प्रतिशत से भी ज्यादा कमजोर हुआ है. यह तुलना दिखाती है कि मनमोहन सरकार के मुकाबले मोदी सरकार के दौरान रुपये का टूटना लगभग दोगुनी रफ्तार से हुआ है, इसलिए रुपये की कमजोरी की जिम्मेदारी मौजूदा दौर में ज्यादा दिखाई देती है.
भारत का कर्ज
विदेशी कर्ज के मामले में भारत का कर्ज बढ़ा है. 2014 में यह 440.6 बिलियन डॉलर था, जो 2023 में 613 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में मोदी सरकार ने काफी मजबूती दिखाई. 2014 में यह 304.2 बिलियन डॉलर था, जबकि 2023 में 595.98 बिलियन डॉलर तक बढ़ गया, यानी लगभग दोगुना. इसके अलावा, व्यापार करने की सरलता (Ease of Doing Business) में भी सुधार हुआ. मनमोहन सरकार में भारत की रैंक 132 से 134 के बीच थी, जबकि मोदी सरकार में यह 63 तक सुधरी. इसका मतलब है कि कारोबार शुरू करना और चलाना अब पहले से काफी आसान हो गया है.
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