निमिषा प्रिया इन दिनों वह नाम है जो कि इस वक्त सुर्खियों में बना हुआ है. भारत में केरल की रहने वाली निमिषा को इन दिनों यमन में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. फिलहाल भारत की मध्यस्थता के चलते उनकी फांसी को कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है. हालांकि विदेश में मौत की सजा काट रहीं निमिषा पहली ऐसी भारतीय नहीं हैं, जिनको कि विदेश में फांसी की सजा हुई है, बल्कि कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश की रहने वाली शहजादी को भी यूएई में फांसी की सजा दे दी गई थी. दुनिया के तमाम देशों में ऐसे बहुत से भारतीय रह रहे हैं, जो कि किसी न किसी वजह से विदेश की जेलों में बंद हैं और सजा काट रहे हैं. उनमें से कई फांसी की सजा का भी सामना कर रहे हैं.
विदेश में भारतीयों को मिलने वाली फांसी की सजा के बारे में तो सभी बात कर रहे हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि भारत में आखिर कितने विदेशी नागरिकों के दोष साबित हुए हैं और उनको फांसी का सामना करना पड़ा हो. दरअसल भारत में अब तक सिर्फ एक ऐसा विदेशी है, जिसको फांसी पर लटकाया गया है. चलिए इस बारे में नीचे विस्तार से जानते हैं.
जब गोलियों से छलनी हुई मुंबई
तारीख 26 नवंबर, साल 2008…ये वो तारीख है जो कि भारत के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है. यही वो तारीख है, जब मायानगरी मुंबई गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल गई थी. करीब 17 साल पहले हुई इस घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया था. 26 नवंबर को पाकिस्तान के 10 आतंकी समुद्र के रास्ते से मुंबई में आए और वहां ऐसा खूनी खेल रचा कि मुंबई सबसे क्रूर आतंकी हमलों की गवाह बन गई.
कितने विदेशियों को भारत में फांसी हुई
इन 10 आतंकियों में से 9 मारे गए थे और 10वें आतंकी अजमल आमिर कसाब को इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले ने जिंदा दबोच लिया था. कसाब इकलौता आतंकी था, जिसको कि उस हमले में जिंदा पकड़ा गया था. कसाब पर साल 2009 में मुकदमा शुरू हुआ और उसे 2012 में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था. कसाब को 21 नवंबर 2012 को पुणे की यरवदा जेल में फांसी की सजा हुई थी. कसाब आजाद भारत का पहला ऐसा विदेशी शख्स था, जो कि फांसी के फंदे से झूला था.
कुछ ही लोगों को थी फांसी की जानकारी
कसाब के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास दया याचिका पहुंची थी, जिसको उन्होंने खारिज कर दिया था. इसके बाद से ही कसाब को फांसी देने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. 25 साल के कसाब को फांसी देने के लिए बाकायदा एक टीम का गठन किया गया था. उसको बेहद ही गोपनीय तरीके से पुणे की यरवदा जेल में फांसी देने के साथ-साथ वहीं दफन करने की भी प्रक्रिया की गई थी. सिर्फ चंद लोगों को ही इस बात की जानकारी थी कि 21 नवंबर की सुबह कसाब को फांसी होनी है. फांसी के बाद पुणे के किसी भी कब्रिस्तान में उसे दफनाने के लिए मना कर दिया था. तब उसे वहीं यरवदा जेल परिसर में ही दफनाया गया था.
पाकिस्तान ने नहीं लिया था आतंकी का शव
कसाब एक पाकिस्तानी नागरिक था, ऐसे में उसे फांसी देने की जानकारी पाकिस्तान को दी गई थी, लेकिन पाकिस्तान ने उसके शव को लेने से मना कर दिया था. पुलिस सूत्रों की मानें तो लश्कर-ए-तैयबा के वरिष्ठ कमांडर दकी-उर-रहमान लखवी ने कसाब के हमले में शामिल होने पर उसके परिवार को डेढ़ लाख रूपये देने की बात कही थी.
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