भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में टेक्नोलॉजी काफी तेजी से बढ़ी है. इससे इंसानों ने तरक्की तो की है, लेकिन इसके साथ ई-वेस्ट का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. यह इंसानों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इससे निपटने का एकमात्र तरीका ई-वेस्ट को रीसाइकिल करना है. क्या आपको पता है कि भारत में अभी कितना ई-वेस्ट रीसाइकिल हो पाता है और इसका क्या फ्यूचर है? बाकी बड़े देश इस दिक्कत से कैसे निपटते हैं?

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ई-वेस्ट में कहां है भारत?

गौर करने वाली बात है कि ई-वेस्ट पैदा करने के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है, जो हर साल लाखों टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा कर रहा है. हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2023-24 के दौरान देश में 1.751 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ, जो 2019-20 के 1.01 एमएमटी से 73 पर्सेंट ज्यादा है. वहीं, रीसाइक्लिंग रेट की बात करें तो यह महज 43 पर्सेंट है. बाकी 57 पर्सेंट यानी करीब 9.9 लाख टन ई-वेस्ट अनौपचारिक क्षेत्र में पहुंच जाता है, जहां विषैले पदार्थ मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित करते हैं. इसी समस्या का समाधान ढूंढने के मकसद से मुंबई के बॉम्बे एग्जिबिशन सेंटर में प्लास्टिक्स रीसाइक्लिंग शो (PRS) इंडिया और भारत रीसाइक्लिंग शो (BRS) 2025 का आयोजन किया गया. इसमें रीसाइक्लिंग टेक्नॉलीज, समाधान और इस फील्ड में हो रहे इनोवेशन पर चर्चा की गई.

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सिर्फ 10 पर्सेंट जस्ता हो रहा रीसाइकिल?

रीजनल सेंटर फॉर अर्बन एंड एनवायरनमेंटल स्टडीज के डायरेक्टर अजित साल्वी के मुताबिक, रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ बन सकती है. दरअसल, देश 2047 में विकसित भारत का सपना देख रहा है, जो रीसाइक्लिंग सेक्टर की भागीदारी और तरक्की के पूरा नहीं हो सकता है. मैटेरियल रीसाइक्लिंग असोसिएशन ऑफ इंडिया (एमआरएआई) के अध्यक्ष संजय मेहता का कहना है कि एमआरएआई पिछले 15 साल से ई-वेस्ट, टायर, प्लास्टिक, तेल, बैटरी और धातु सहित विभिन्न सेक्टर्स में नीति निर्माण और वकालत के लिए केंद्र सरकार के साथ काम कर रहा है. भारत ने ई-कचरा, टायर और धातु जैसे रीसाइक्लिंग एरिया में काफी तरक्की की है, लेकिन प्लास्टिक उद्योग में अब भी काफी चुनौतियां हैं. हमारा सबसे पहला एजेंडा भारत में प्लास्टिक स्क्रैप रीसाइक्लिंग पर सटीक और व्यापक डेटा जुटाना है. प्लास्टिक सेक्टर में पहले से ही सालाना 10 मिलियन टन से अधिक ई-वेस्ट प्रोसेस किया जा रहा है, लेकिन जस्ते जैसी धातुओं की रीसाइक्लिंग दर महज 10 पर्सेंट है.

महाराष्ट्र को मिली यह कामयाबी

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सिद्धेश कदम का कहना है कि पर्यावरण की रक्षा करने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है. यह एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य और केंद्र सरकारों के साथ साझेदारी में रीसाइक्लिंग और संसाधन मैनेजमेंट स्टार्टअप बढ़ाने के लिए इनक्यूबेशन हब डिवेलप कर रहा है. 

भारत में क्या चुनौतियां?

इको रीसाइक्लिंग के अध्यक्ष और एमडी बीके सोनी के मुताबिक, भारत में रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती औपचारिक रीसाइक्लिंग के लिए कच्चे माल की उपलब्धता है, जबकि व्यवसाय स्वाभाविक रूप से व्यवहार्य, लाभदायक और टिकाऊ है. सही स्ट्रक्चर बनाया जाए तो भारत का रीसाइक्लिंग सेक्टर तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि सोना, चांदी, पैलेडियम, लिथियम और कोबाल्ट जैसी कीमती चीजों को निकालने की तकनीक ग्लोबल लेवल पर पहले से मौजूद हैं. अभी भारत में सिर्फ 5 पर्सेंट ई-वेस्ट ही रीसाइक्लिंग किया जा रहा है, जिसके लिए करीब 2500 करोड़ का इनवेस्टमेंट किया गया है. अगर रीसाइक्लिंग के टारगेट हासिल करने हैं तो इस सेक्टर को करीब 50 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी. 

किन शहरों से ज्यादा निकलता है ई-वेस्ट?

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में भारत ने 3.8 एमएमटी ई-वेस्ट पैदा किया, जो ग्लोबल प्रॉडक्शन का 6.4 पर्सेंट है. मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई और कोलकाता जैसे 65 शहरों से देश का 60 पर्सेंट ई-वेस्ट निकलता है. हालांकि, समस्या सिर्फ मात्रा की नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की है. 2023-24 में रीसाइक्लिंग दर 43 पर्सेंट पहुंची, जो 2019-20 के 22 पर्सेंट से दोगुनी है. इसके बावजूद यह ई-वेस्ट के हिसाब से कम है. 

दुनिया में कैसे रीसाइकिल होता है ई-वेस्ट?

फ्यूचर मार्केट इनसाइट्स 2025 रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, जापान, साउथ कोरिया और यूके ई-वेस्ट मैनेजमेंट में सबसे आगे हैं. इस मामले में यूरोपीय संघ वर्ल्ड लीडर है, जहां 42.5 पर्सेंट रीसाइक्लिंग रेट है. वेस्ट इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट (डब्ल्यूईईई) डायरेक्टिव 2003 से निर्माताओं पर ईपीआर डालता है. रिस्ट्रिक्शन ऑफ हेजार्डस सबस्टांसेज (आरओएचएस) डायरेक्टिव विषैले केमिकल्स कंट्रोल करता है. 2025 से बेसल कन्वेंशन के तहत सभी ई-वेस्ट एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगा दी गई है. जर्मनी और स्विट्जरलैंड ने 1990 के दशक में लैंडफिल बैन लगाया, जिससे 80 पर्सेंट रीसाइक्लिंग हो रही है. 

7 एमएमटी ई-वेस्ट पैदा करने वाले अमेरिका में फेडरल लेवल पर कोई यूनिफॉर्म लॉ नहीं, लेकिन 25 स्टेट्स में ईपीआर कानून हैं. कैलिफोर्निया के ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग एक्ट 2003 के तहत कलेक्शन फीस लगाई जाती है. वहीं, 2025 से बेसल कन्वेंशन के तहत नॉन-हेजार्डस ई-वेस्ट एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी गई है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक 10 एमएमटी देश है, लेकिन 2018 से फॉरेन ई-वेस्ट इंपोर्ट पर बैन लगा दिया गया है. जापान में 2.5 एमएमटी ई-वेस्ट होता है, लेकिन होम अप्लायंस रीसाइक्लिंग लॉ 2001 के तहत निर्माताओं पर 75 पर्सेंट रीसाइक्लिंग की जिम्मेदारी है. 

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