Indian Railways: भारतीय रेलवे जिसे देश की जीवन रेखा कहा जाता है रोजाना लाखों लोगों को जोड़ती है. यह किसी भी अन्य परिवहन माध्यम से काफी कम किराए पर सुविधा प्रदान करती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिल्ली से बिहार जाने में रेलवे वास्तव में कितना खर्च करता है और प्रति टिकट उसे कितना फायदा होता है? आइए जानते हैं क्या है इसका जवाब.

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कमाई से ज्यादा खर्च 

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारतीय रेलवे प्रति यात्री प्रति किलोमीटर 1.38 रुपए खर्च करता है. लेकिन भारतीय रेलवे यात्रियों से सिर्फ 0.71 रुपए प्रति किलोमीटर ही वसूलता है. इसका सीधा सा मतलब होता है कि यात्री यात्रा पर खर्च किए गए प्रत्येक ₹100 पर रेलवे को ₹54 मिलते हैं. इससे यात्रियों को 46% की सब्सिडी मिलती है.  आपको बता दें कि यह सब्सिडी समाज के सभी वर्गों के लिए ट्रेन यात्रा को किफायती बनाने की सरकार की एक नीति का हिस्सा है.

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दिल्ली बिहार रूट

दिल्ली और बिहार के बीच चलने वाली ट्रेन देश की सबसे भीड़ भाड़ वाली और व्यस्त ट्रेनों में से एक है. यह ट्रेनें लाखों प्रवासी कामगारों, छात्रों और यात्रियों को अपनी सेवाएं देती हैं. भारी यात्रा भार के बावजूद भी यह रूट बाकी लंबी दूरी की ट्रेनों की तरह ही लागत संरचना पर चलता है.

उदाहरण के तौर पर अमृत भारत या फिर एक्सप्रेस ट्रेनों में स्लीपर क्लास में दिल्ली पटना का टिकट अगर ₹560 का भी मानें  तब भी यह किराया लाभ नहीं दर्शाता. रेलवे अभी भी अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करता है. इसमें ईंधन से लेकर कर्मचारियों के वेतन, स्टेशन संचालन, रखरखाव और सफाई तक सब कुछ कुल लागत यात्रियों से लिए गए किराए से काफी ज्यादा है. 

रेलवे को एक ट्रेन चलाने में कितना खर्च आता है 

अगर इलेक्ट्रॉनिक ट्रेनों की बात करें तो बिजली की लागत लगभग ₹130 प्रति किलोमीटर है. वहीं डीजल इंजनों के लिए यह और भी ज्यादा है. डीजल इंजनों के लिए यह कीमत साढे ₹300 से ₹400 प्रति किलोमीटर है. अगर इसमें चालक दल के वेतन, ट्रैक रखरखाव, सिग्नलिंग, सुरक्षा उपाय और बाकी स्टेशन प्रबंधन के खर्चों को भी जोड़ दे तो प्रति किलोमीटर ट्रेन की लागत और भी बढ़ जाती है. 

माल ढुलाई परिचालन यात्री घाटे की भरपाई करता है 

अब सवाल यह उठता है कि अगर भारतीय रेलवे यात्री ट्रेनों से कमाई नहीं करता तो फिर उसका खर्चा कैसे चलता है. इसका जवाब है माल ढुलाई. दरअसल माल ढुलाई कोयला, सीमेंट, खाद्यान्न और बाकी सामान ले जाना रेलवे की आय का एक बड़ा और प्राथमिक स्रोत है. एकमात्र यही क्षेत्र है जो यात्री सेवाओं में होने वाले नुकसान की भरपाई करने में मदद करता है. दरअसल यात्रियों के लिए कम किराए को संतुलित करने के लिए माल ढुलाई शुल्क को जानबूझकर काफी ज्यादा रखा जाता है.

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