आपने अगर फ्लाइट में सफर किया होगा, तो आपने शायद देखा होगा कि एयरपोर्ट पर फ्लाइट टेकऑफ करने से पहले उसमें फ्यूल भरा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि फ्लाइट में कितना फ्यूल भरा जाता है और आसमान में फ्यूल खत्म होने की स्थिति में पायलट क्या करता है. आज हम आपको बताएंगे कि फ्लाइट में कितना फ्यूल भरा जाता है. 


फ्लाइट का फ्यूल टैंक कितना बड़ा?


बता दें कि किसी भी फ्लाइट का फ्यूल टैंक उसके साइज पर निर्भर करता है. जैसे एयरबस ए380 के फ्यूल टैंक में 323,591 लीटर, बोइंग 747 में 182,000 लीटर तेल आता है. वहीं छोटे जहाजों की फ्यूल टैंक कैपिसिटी 4000–5000 लीटर की होती है. इसके अलावा मझोले विमानों की 26000 से 30000 लीटर फ्यूल टैंक कैपिसिटी होती है. 


फ्लाइट का माइलेज


बोइंग 747 बनाने वाली कंपनी के मुताबिक फ्लाइट को एक किलोमीटर उड़ान भरने के लिए लगभग 12 लीटर फ्यूल की जरूरत होती है. बता दें कि प्लेन की रफ्तार 900 किलोमीटर/घंटा (ग्राउंड स्पीड) होती है. इस फ्लाइट में एक बार में 568 लोग बैठकर एक साथ फ्लाइट में सफर कर सकते हैं. हालांकि कई रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र है कि एक घंटे में फ्लाइट 2400 लीटर फ्यूल की खपत करती है. सामान्य तौर पर एक घंटे में फ्लाइट 900 किलोमीटर तक की दूरी तय करती है. इस हिसाब से एक किलोमीटर के लिए 2.6 लीटर फ्यूल की खपत होती है.


आसमान में कैसे भरा जाता है फ्यूल


बता दें कि जब भी हवा में उड़ रहे प्लेन का पेट्रोल खत्म होने लगता है, तो इंडिकेटर की मदद से पायलट को यह पता चल जाता है. जिसके बाद पायलट यह जानकारी कंट्रोल रूम तक भेजता है, कंट्रोल रूम सबसे पास के इलाके से एक फ्यूल से भरे दूसरे फ्लाइट को आसमान में तेजी से भेजता है. वहीं जब फ्यूल से भरा प्लेन पहले वाले प्लेन के पास पहुंचता है तो दोनों प्लेन एक दूसरे के साथ पैरेलल एक ही स्पीड में उड़ान भरते हैं.


इसी वक्त फ्यूल वाले प्लेन से एक नोजल निकाला जाता है. बता दें कि हवाई जहाज का जो फ्यूल टैंक होता है, वह उसके विंग्स में होता है. इस दौरान नोजल में सेंसर लगा होता है, जिसकी मदद से वो फ्यूल टैंक को खोज कर उसमें फ्यूल भरने का काम करता है.


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